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कुंडलिया


कुंडलिया छंद से सम्बंधित जानकारी साझा कर रहा हूँ आशा है कि इसकी सहायता से आदरणीय विद्वजन अपनी कुंडलिया में अपेक्षित लाभ उठा सकेंगे |

कुंडलिया के माध्यम से 'कुंडलिया' छंद की परिभाषा :-

 

(कुंडलिया =दोहा+रोला , प्रारम्भिक व अंतिम शब्द एक ही, अंत में कर्णा २२ या गुरु लघु गुरु २१२ या लघु लघु गुरु ११२ अथवा लघु लघु लघु लघु ११११ )

 

दोहा कुण्डलिया बने, ले रोले का भार,

अंतिम से प्रारम्भ जो होगा बेड़ा पार,  

होगा बेड़ा पार, छंद की महिमा न्यारी,  

अंत समापन दीर्घ, कहे यह दुनिया सारी,

'अम्बरीष' क्या छंद, शिल्प ने सबको मोहा.  

सर्दी बरखा धूप, खिले हर मौसम दोहा..

--इं० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

“छः चरणों से युक्त कुंडलिया के प्रत्येक चरण में चौबीस मात्राएँ होती हैं यह छंद एक दोहा (प्रत्येक में १३+११ मात्रा) व  एक रोला  (प्रत्येक में ११+१३ मात्रा) के संयोग से निर्मित होता है |

कुंडलिया छंद में दूसरे चरण का उत्तरार्ध तीसरे चरण का पूर्वार्ध होता है|जिस शब्द या शब्द-समूह से यह प्रारंभ होता है उसी शब्द या शब्द-समूह से इसका समापन भी किया जाता है चूँकि रोले का समापन दीर्घ से होता है अतः कुंडलिया के प्रारंभिक शब्द के अंत में में दीर्घ इस प्रकार आना चाहिए कि उसकी गेयता अप्रभावित रहे| ( उदाहरण के लिए जैसे कुंडलिया के प्रारंभिक शब्द चयन में 'सरहद' शब्द के बजाय सीमा शब्द अधिक उपयुक्त है) वैसे तो इसके रोले के अंत में गुरु ही आना चाहिए तथापि कर्णा २२ या गुरु लघु गुरु २१२ या लघु लघु गुरु ११२ अथवा लघु लघु लघु लघु ११११ आदि भी स्वीकार कर लिए गए हैं | रोला में 11 वी मात्रा लघु तथा उससे ठीक पहले गुरु होना आवश्यक है | रोले में यति 11वी मात्रा तथा पादान्त पर होती है| कुंडलिया के रोले के तीसरे चरण में कवियों द्वारा अपना नाम डालने की परंपरा रही है|”


उदाहरण
कमरी थोरे दाम की, बहुतै आवै काम।
खासा मलमल वाफ्ता, उनकर राखै मान॥
उनकर राखै मान, बँद जहँ आड़े आवै।
बकुचा बाँधे मोट, राति को झारि बिछावै॥
कह 'गिरिधर कविराय', मिलत है थोरे दमरी।
सब दिन राखै साथ, बड़ी मर्यादा कमरी॥

.

ध्यातव्य
दोहा कुण्डलिया बने, ले रोलों का भार,
तेरह-ग्यारह जोड़िये, होगा बेड़ा पार,
होगा बेड़ा पार,छंद की महिमा न्यारी,
बहती रस की धार, मगन हो दुनिया सारी,
'अम्बरीष' क्या छंद, शिल्प ने सबको मोहा.
सर्दी बरखा धूप, खिले हर मौसम दोहा..

.

कुंडलिया में मित्रवर, अंतिम से प्रारंभ.
करें समापन दीर्घ से, गुरुता हरती दंभ..
गुरुता हरती दंभ, सरलता मन को भाये.
तुक से मेल-मिलाप, छंद निर्मल कर जाये.
‘अम्बरीष’दें ध्यान, चित्त यह होता छलिया.
रमे कृष्ण में साध, लगे सुन्दर कुंडलिया..

सादर: अम्बरीष श्रीवास्तव

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Replies to This Discussion

अम्बरीश जी को नमस्कार और धन्यवाद् जानकारी साझा करने के लिए!

नमस्कार मित्र ! आपका स्वागत है |

अम्बरीष श्रीवास्तव जी नमस्कार .......बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है आपने ...सर इस विधा में  मैने बहुत पहले एक कुंडलिया छन्द लिखा था....आप् की नज़र से ज़रा देखें उसे कृतज्ञ रहुंगा ।

___चुगली
 
चुगली निकल ज़ुबान से, अदभुत खेल दिखाए
इंसानों के रिश्तों में, तुरुत फेर पड़ जाए |
तुरुत फेर पड़ जाए, हो जाएँ जंग दुतरफे
सब भुजंग बन जाएँ ,जु इक-इक जां को तरसे
कहे 'हरश' दो पलट, चुगल-खोरों की गुगली
इक-इक करके पकड़, झटक दो करे जु चुगली |

__________हर्ष महाजन

नमस्कार हर्ष जी !

कुंडलिया से सम्बंधित जानकारी पसंद करने के लिए आपके प्रति हार्दिक आभार !

//चुगली निकल ज़ुबान से, अदभुत खेल दिखा
  इंसानों के रिश्तों में, तुरुत फेर पड़ जा |
तुरुत फेर पड़ जाए, हो जाएँ जंग दुतरफे
सब भुजंग बन जाएँ ,जु इक-इक जां को तरसे
कहे 'हरश' दो पलट, चुगल-खोरों की गुगली
इक-इक करके पकड़, झटक दो करे जु चुगली |//

इसमें निम्नलिखित प्रकार से संशोधन कर सकते हैं ....

चुगली निकल ज़ुबान से, अदभुत खेल दिखाय,
रिश्तों में इंसान के, तुरत फेर पड़ जाय |
तुरत फेर पड़ जाए, करावे  जंग दुतरफे,
सब भुजंग बन जांय , जु इक-इक जां को तरसे,
कहे 'हर्ष' दो पलट, चुगल-खोरों की गुगली,
इक-इक करके पकड़, झटक दो करे जु चुगली||

मित्र नीरज जी ,

कुंडलिया रचने का अच्छा प्रयास किया है आपने ! बहुत-बहुत बधाई अनुज |

कृपया कुंडलिया से सम्बंधित उपरोक्त लेख को कृपया ध्यान से पढ़ें ! आप द्वारा रचित उपरोक्त कुंडलिया उसी शब्द से समाप्त नहीं हुआ जिससे उसका प्रारम्भ  हुआ था .......यद्यपि काका हाथरसी ने ऐसे भी प्रयोग किये हैं परन्तु वह अपवाद स्वरूप ही प्रतीत होते हैं |

"कुंडलिया का  प्रारंभ जिस शब्द से  होता है उसी से इसका समापन भी किया जाता है चूँकि रोले का समापन दीर्घ से होता है अतः कुंडलिया के प्रारंभिक शब्द के अंत में में दीर्घ इस प्रकार आना चाहिए कि उसकी गेयता अप्रभावित रहे| ( उदाहरण के लिए जैसे कुंडलिया के प्रारंभिक शब्द चयन में 'सरहद' शब्द के बजाय सीमा शब्द अधिक उपयुक्त है)"

अम्बरीश भाई, ये समूह तो चूक ही गया था....बहुत अच्छा मंच है हमारे जैसे सीखने वालों के लिए....

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