For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

समीक्षा : “अब किसे भारत कहें” एक कुण्डलिया छंद संग्रह.

 

 

अब किसे भारत कहें” नाम देखकर तो लगा न था की यह कोई कुण्डलिया संग्रह होगा. किन्तु यह डॉ. रमाकांत सोनी जी का जुलाई-१६ में प्रकाशित कुण्डलिया संग्रह है.

         

  डॉ. रमाकांत सोनी जी की अब तक छह पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. सर्व प्रथम प्रकाशित पुस्तक है “चाँपा : अतीत से वर्तमान तक” चाँपा छत्तीसगढ़ का एक जिला है और डॉ. रमाकांत जी का जन्म स्थान भी है. लगभग चार सौ पृष्ठ की यह पुस्तक एक ग्रन्थ ही है. अपनी जन्मभूमि के विषय में लिखना, उसका आभार व्यक्त करने समान ही है. बहुत बिरले साहित्यकारों को ही यह सौभाग्य प्राप्त है. वर्ष २००८ में ही इनकी दूसरी पुस्तक जो स्वर्णकार समाज पर केन्द्रित है “स्वर्णाक्षर” का प्रकाशन हुआ.

     

      छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति और लोकगीत सदैव मन मोहते हैं. उसपर ही आधारित है इनकी तीसरी पुस्तक “अँचरा के छाँव” वरिष्ठ साहित्यकार पं. विद्याभूषण मिश्र जी ने इस पुस्तक के विषय में कहा है “ ‘अँचरा के छाँव’ डॉ. रमाकांत सोनी के चौबीस आलेखों की एक मूल्यवान पठनीय कृति है | इसे पढ़ते समय ऐसा लगा है मानो हम एक शोध ग्रन्थ का अध्ययन कर रहे हैं | लेखक ने छत्तीसगढ़ के तीज-त्यौहार, लोक-व्यवहार एवं विभिन्न अवसरों पर गाए जाने वाले लोकगीतों के सांस्कृतिक महत्त्व एवं उनकी माधुर्यमयी उपादेयता पर प्रकाश डाला है |”

 

फिर सन २०११ में  “मोर कहाँ गवांगे गाँव” सन २०१२ में “गीत से संवाद” प्रकाशित हुई.

 

छंद रचनाओं की प्रकाशित पहली पुस्तक “अक्षर पावन फूल” एक दोहा संग्रह है और इसके पश्चात प्रकाशित “अब किसे भारत कहें” कुण्डलिया छंदों का संग्रह है.

 

      छंद काव्य, मात्रा गणना की उलझनों , छंद शिल्प आदि की जानकारी के अभाव में वर्तमान के कवियों से दूर ही रहा है. अतुकांत ने इस दौर में अपनी पकड़ मजबूत की है, किन्तु कई बार वह भी इस तरह लिखा जाता है जैसे गद्य को टुकडे-टुकडे कर लिख दिया हो.

     

कुण्डलिया छंद की बात करें तो यह छः पंक्तियों का एक मिश्रित छंद है. जिसकी प्रथम दो पंक्तियाँ दोहा व् शेष चार पंक्तियाँ रोला की होतीं हैं. इस छंद की विशेषता यह होती है की दोहा छंद का अंतिम चरण रोला छंद का प्रथम चरण बनता है तथा छंद जिस शब्द, शब्द समूह या शब्दांश से प्रारम्भ होता है, उसी से उसका समापन भी होता है. कुण्डलिया छंद को पुनर्जीवन देने में आज कई कविगणों का महत्वपूर्ण योगदान है. इसमें भी विशेषकर आदरणीय त्रिलोक सिंह ठकुरेला जी का विशेष योगदान है. वे नव रचनाकारों को कुण्डलिया छंद रचने के लिए प्रेरित तो कर ही रहे हैं साथ ही उनके छंदों को पुस्तक बद्ध करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. आज के दौर में कुण्डलिया छंद पर जो रचनाकार कार्य कर रहे हैं उनमे प्रमुख हैं डॉ. राम सनेही लाल शर्मा ‘यायावर’, रामशंकर वर्मा, डॉ. नलिन, डॉ. जगन्नाथ प्रसाद बघेल, गाफिल स्वामी, साधना ठकुरेला, डॉ. ज्योत्सना शर्मा, शिवानन्द ‘सहयोगी’ राजेश प्रभाकर, परमजीत कौर ‘रीत’ आदि एक लम्बी सूची है जो दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है.

 

कुण्डलिया छंद पर हो रहे कार्य के रूप में ही है आदरणीय डॉ. रमाकांत सोनी जी का कुण्डलिया छंद संग्रह ‘अब किसे भारत कहें’ इसमें कुल १७७ छंद विभिन्न विषयों पर आधारित छपे हैं. प्रथम छंद में कवि ने माता सरस्वती से जो प्रार्थना की है इसीसे कवि की लगन और काव्य कौशल का परिचय मिल जाता है.

 

माँ वीणा वरदायिनी, दो मुझको आशीष |

तेरे चरणों में सदा, झुका रहे यह शीश ||

झुका रहे यह शीश, भाल उन्नत हो तेरा |

शिव सुन्दर हो नित्य, सत्य का उगे सवेरा |

कह सोनी कविराय, काव्य की सुरभित सुषमा |

गाऊँ मैं यशगान, यही वर दो मुझको माँ ||

 

सारे छंद जब वर्तमान की परिस्थितियों कन्याभ्रूण ह्त्या, आपसी सम्बन्धों की स्थिति जैसे विषय पर हैं तब माँ के कोमल ह्रदय पर हुए परिणाम के भावों का छंद बद्ध होना भी आवश्यक ही था. कवि ने अपने एक छंद में वह किसतरह कहा है वह स्वयं छंद पढ़कर महसूस करें.

 

घर-आँगन में उठ गयी, जबसे यह दीवार |

दुखिया माँ रोने लगी, कैसे बाँटू प्यार ||

कैसे बाँटू प्यार, ये उसके समझ न आये |

देते खाना बाँट,किसे अपना दुख गाए |

कह सोनी कविराय, बँटा घर पूजा-पावन |

दिया ह्रदय भी बाँट, की जैसे हो घर-आँगन ||

 

छत्तीसगढ़ औषधीय पौधों की खेती के लिए भी विशेष रूप से जाना जाता है, तब कवि द्वारा आयुर्वेदिक औषधियों के महत्व पर छंद लिखा जाना उचित ही है.

 

तुलसी नीम व आँवला, अगर रहें घर पास |

हो निरोग परिवार औ, जीवन भी हो ख़ास ||

जीवन भी हो ख़ास, प्रदूषण दूर रहेगा |

तन-मन रहे निरोग , आयु में वृद्धि करेगा |

कह सोनी कविराय, प्रकृति इनको पा हुलसी |

करें पान-अनुपान, आँवला नीम व तुलसी ||

 

अपने भावों की अभिव्यक्ति मात्र छह पंक्तियों में, वह भी एक निर्धारित शिल्प के अंतर्गत कहना आसान कार्य नहीं होता है. कहीं भी रही अपूर्णता से छंद का स्वरूप भी बदल सकता है या वह छंद ही नहीं रह जाए वाली स्थिति भी आ सकती है तब डॉ. रमाकांत जी द्वारा लिखे गए छंद उनकी कड़ी मेहनत और अभ्यास का ही परिणाम हैं. यही जीवता उनके इस छंद में भी दिखती है. || जीवन जैसा चाहिए, खुद ही करें प्रयास | कोरे कागज़ की तरह, है निर्मल आकाश || है निर्मल आकाश, काम कुछ ऐसा करिए | इन्द्रधनुष से रंग, सदा जीवन में भरिये || कह सोनी कविराय, चाहते जीवन कैसा | गढ़ना होगा आप, चाहिए जीवन जैसा ||.

 

      डॉ. रमाकांत जी ने इस पुस्तक में विविध विषयों पर कुण्डलिया छंद राजनीति, नारी, शृंगार, मँहगाई, ग्राम्य जीवन, शिक्षा, जन्मदिवस, नव वर्ष आदि. किन्तु छंदों को विषय अनुसार क्रम नहीं दिया गया है. यदि छंदों को विषयवार उचित शीर्षक देकर रखा गया होता तो अवश्य ही पाठक के लिए यह सुविधाजनक होता. फिरभी इस संग्रह में किसी भी रूचि पाठक को उसकी पसंद के कई उत्तम छंद पढने मिलेंगे.

     

आज के वक्त बड़ी-बड़ी कवितायेँ पढने वाले कम ही हैं तब मात्र छह पंक्तियों के छंद में कही गई बात पाठक शीघ्र ग्राह्य कर लेता है और इसके साथ ही उसकी छंदों को पढ़ने की रूचि बनी रहती है. मैं डॉ. रमाकांत सोनी जी को इस उत्तम छंद संग्रह ‘अब किसे भारत कहें’ के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूँ.

 

 

 

संग्रह : अब किसे भारत कहें.

छंदकार : डॉ. रमाकांत सोनी

संपर्क : निदेशक, अक्षर प्रकाशन, ६, सराफा बाजार, चांपा ४९५६७१, छत्तीसगढ़.

मोबाइल : ०९००९०६११५१

मूल्य : रूपये २००/- दो सौ रूपये. (हार्ड बाइंड)

प्रकाशक : समर प्रकाशन, ६४-ए, बैंक कॉलोनी,महेश नगर विस्तार, गोपालपुरा बाईपास,

जयपुर.

दूरभाष :०१४१-२५०३९८९,९८२९०-१८०८७.

ई-मेल : samarprakashan@gmail.com.

 

 

 

समीक्षा :

अशोक कुमार रक्ताले,

५४, राजस्व कॉलोनी, उज्जैन (म.प्र.)

मोबाइल: ९८२७२-५६३४३.

Views: 639

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
15 hours ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service