For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नारी की अनिवर्चनीय पीड़ा का अनोखा दस्तावेज – अहिल्या एक सफ़र------डॉ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव

‘अहिल्या –एक सफ़र’ कुंती मुकर्जी का पहला उपन्यास है . इसकी भूमिका पढ़ते समय मुझे आचार्य हजारी प्रसाद द्वेवेदी के उपन्यास ‘अनामदास के पोथा’ की याद आयी . ‘अनाम दास के पोथा’ की भूमिका में आचार्य ने बताया कि  कैसे उनके पास एक साधारण बुजुर्ग आये और उन्होंने कागज़ का एक पुलिंदा उन्हें थमाते हुए कहा कि आप इस को उपन्यास के रूप में लिख दे , यह मेरे जीवन भर की पूंजी है . आचार्य के लिए यह घटना अद्भुत थी,  किन्तु किसी के कबाड़ को वे अपने उपन्यास का विषय बनाएं , यह उनके लिए सहज नहीं था . वह व्यक्ति अपना पुलिंदा उनके पास छोड़ कर चला गया . कभी समय पाकर आचार्य ने  उस पुलिदे को उलटा पुल्टा और यह देखकर हैरान रह गये कि वह गाथा वृह्दारण्यक उपनिषद के मुनिकुमार रैक्व के जीवन से सम्बंधित थी . अनिश्चय की स्थिति में आचार्य उस महापुरुष का नाम भी नही पूछ सके थे . अतः उन्होंने उस महापुरुष को ‘अनामदास’ का अभिधान दिया और उपन्यास का नाम रखा ‘अनामदास का पोथा’ .  

अनामदास की भाँति  अहिल्या भी एक दिन अचानक कुंती मुकर्जी के सामने उनके आफिस में प्रकट हुयी . उस समय उसकी उम्र साठ के आस-पास थी  पर उसका सौन्दर्य तब भी कम नहीं हुआ था . लंबा छरहरा बदन, घुंघराले सुनहरे बाल, बडी-बड़ी बिल्लौरी आँखें, लावण्य से भरपूर चिकनी, चमकती गुलाबी त्वचा और आत्म विश्वास से भरपूर मधुर और खनकती हुयी आवाज .अहिल्या जिसका वास्तविक नाम मारीलूज आलेया जोजेफीन था, मारीशस की सबसे प्रख्यात हाई प्रोफाइल कालगर्ल थी और वह अपनी जीवनी लिखाने हेतु आयी थी, किन्तु कुंती मुकर्जी लेखिका  नहीं अपितु एक एस्ट्रोलाजर थी . इसके बावजूद आलेया का विश्वास अटल था , उसे यकीन था कि उसकी संघर्षपूर्ण जीवनगाथा न्यायपूर्ण तरीके से केवल एक नारी ही लिख सकती है और वह नारी थी एक मात्र कुंती मुकर्जी .

अहिल्या की माँ  सही मायने में एक  निम्फोमानियाक (nymphomaniyac) थी . इसीलिये वह अपने पति और अहिल्या के पिता का घर छोड़कर अपने चीनी  प्रेमी के पास चली गयी और वैश्यावृत्ति करने लगी . अहिल्या के पिता ने दूसरी शादी कर ली और अहिल्या को विमाता के साथ रहना पडा . अहिल्या जब अज्ञात यौवना बनी तो वह किसी परी से कम सुन्दरी नहीं थी , उसकी सुगढ़ देहयष्टि कितने ही विश्वामित्रों का तप भंग करने में सक्षम थी . किन्तु उसका भाग्य उसे अपनी जन्मदाता माँ की और ले गया जो  अपने पति और सौत से बदला लेना चाहती थी.  इस हेतु उसने अपनी बेटी को चारा बनाया और उसे फुसलाकर अगवा कर लिया . इतना ही नहीं आनन- फानन उसकी शादी अपनी सहेली के  बेटे  मनीष से कर दी , जिसे अहिल्या  एक रोटी विक्रेता के रूप में पहले से जानती थी .

यहीं से अहिल्या के जीवन का काला अध्याय प्रारंभ हुआ . मनीष एक बेरहम पति और सेक्स का अमानुषिक खिलाड़ी था . उसके अत्याचार अहिल्या ने पतिव्रता की भांति सहे और सात बच्चों की माँ बनी . बच्चे उसकी क्रूर सास ने हथिया लिए और उसे मातृत्व सुख भी नसीब न हुआ . अपने पति से सच्चा और उदात्त प्यार पाने की उसकी लालसा कभी पूरी न हुयी . बल्कि उसे इतनी यातनाएं दी गयी कि उसे हॉस्पिटल में भर्ती  होना पड़ा . हास्पिटल में अहिल्या से मिलने उसके घर से कोई नहीं आया . वह जब डिस्चार्ज हुयी तब ऊहापोह और अनिश्चय की स्थिति में घर जाने के स्थान पर उसने अपनी मौसी सुरेखा के गाँव ग्रुत जाना पसंद किया, जहाँ वह डच कालोनियल की एक बड़ी सी हवेली में रहती थी .      मौसी-मौसा ने अहिल्या का भरपूर स्वागत किया . मौसी की हवेली बहुत बड़ी थी . जब मौसा अपनी नौकरी पर जाते और मौसी खेतों की देखभाल में बाहर रहती तब अहिल्या बीस कमरों वाली उस हवेली में भ्रमण करती . उस हवेली में उसे रहस्यात्मक अनुभूति  हुयी .उसने वहां रोजलीन की आत्मा को देखा .   रोजलीन एक नीम्फ थी . कोई कहता वह यक्षिणी थी . कोई  उसे हब्शी देश से खरीदी गयी श्याम-सुन्दरी (BLACK BEAUTY) कहता . 1769 ई० में जब पियेर पुआव विभिन्न देशों से जडी बूटियों का पौधा मौरिस ला रहे थे , तब यह निम्फ उसके हाथ लग गयी . रोजलीन गजब की सुन्दरी थी . काले-काले घुंघराले बाल जो नागिन की तरह लहराती बलखाती उसकी पिन्डली तक आते थे , उन्नत उरोज, बड़ी-बड़ी काली चमकदार आँखें और दाड़िम के सदृश कसे धवल दांत, उसकी काली चमकदार चिकनी चमड़ी , पुष्ट नितम्ब और पतली कमर देखते ही बनता था . पियेर पुआव ने रोजलीन को उस समय के सबसे समृद्ध ड्यूक फिलीप दे लातूर के हाथों बेचा . जब मारीशस में अंग्रेजों का प्रभुत्व बढ़ा तब फ्रेंच वहां से भागने को विवश हो गये . उन्होंने जाने से पूर्व अपने खजाने को एक अंधे कुंएं में छिपा दिया और तांत्रिक विधि से खजाने की रक्षा के लिए रोजलीन को खजाने की रक्षा हेतु बचनबद्ध कर उसकी बलि उस अवस्था में चढ़ाई गयी जब उसे तीन हब्शियों के साथ रति करने हेतु स्वंतत्र छोड़ा गया था और वह तथा उसके साथी आनंदातिरेक की चरम अवस्था में थे . उसके साथ ही उन तीन हब्शियों का भी गला काट दिया गया . इस तांत्रिक बलि का तार्किक पक्ष यह है कि अधूरी इच्छा किसी भी इंसान के लिए बहुत खतरनाक होती है . खासकर रतिलीन युगल जिन्हें उनकी निवृति तक छेड़ने का निषेध है . रोजलीन की प्यास बुझी नहीं थी . चरम और अतृप्त अवस्था में उसकी बलि चढ़ाई गयी . रोजलीन अशरीर तो हो गयी किन्तु उसकी आत्मा सदैव के लिये अनाप्यायित हो गयी .  वासना कभी मरती नहीं . अकाल मृत्यु की अवस्था में इंसान के मरने के बाद भी वह उसका पीछा नहीं छोडती और आत्मा अपनी अधूरी पिपासा की शांति के लिए तब एक शरीर ढूंढती है . रोजलीन तांत्रिक विधान से एक ओर खजाने की रक्षा के प्रति निष्ठापूर्वक वचन बद्ध थी तो दूसरी और उसे अपनी पैशाचिक वासना की शांति हेतु किसी सुदृढ़ नारी देह की आवश्यकता थी .

जिस अंधे कुएं में रोजलीन की बलि दी गयी  वह उसी हवेली में था जिसकी मालकिन अहिल्या की मौसी सुरेखा थी  . सुरेखा को भी रोजलीन का रहस्य ज्ञात था . उसने प्रकारांतर से अपने निहित स्वार्थ की पूर्ति हेतु अहिल्या को रोजलीन के संपर्क में जाने हेतु उत्साहित किया.  उधर रोजलीन की आत्मा ने भी अहिल्या की सुगढ़ देहयष्टि को अपनी वासना तृप्ति  का उपयुक्त साधन मानकर उसके शरीर को अपना अस्थायी निवास बनाने का निश्चय कर लिया . रोजलीन की आत्मा के संसर्ग में अहिल्या  किस प्रकार अनेक षड्यंत्रों का शिकार हुयी . किस प्रकार उसके शरीर का चाहे अनचाहे शोषण हुआ  यह एक वृहद् गाथा है जिसके लिए पूरे उपन्यास में उतरना पडेगा . सही मायने में ‘अहिल्या –एक सफ़र’ उपन्यास वयस्कों के लिए लिखा गया है . इसका  ‘एडल्ट मटेरियल’  बड़ा ही क्लासिक है . इसकी कथा-नायिका अहिल्या   एक अदृश्य आत्मा से नियंत्रित हाई- प्रोफाईल काल-गर्ल है तो निश्चय ही  उपन्यास का सारा वातावरण ऐसे ही लोगों से पटा पड़ा होगा जो वासना के कुत्सित कीड़े हैं , जिनके लिए औरत केवल एक जिस्म है . जहां स्त्री पुरुष के बीच केवल देह का नाता है . सामाजिक सम्बन्ध जहाँ कोई मायने नहीं रखते , इसलिए अहिल्या कभी परिस्थिति वश और कभी स्वेच्छा से  अपने अति निकट संबंधियों यहाँ तक कि दामाद और अपने जनक पिता तक से शरीर सम्बन्ध स्थापित करती है . इस समाज में न उम्र का कोई बंधन है न उंच- नीच का कोई  विचार है न जातिगत कोई  भेद है . अहमियत है तो केवल इस बात की काम-कला और शारीरिक दक्षता में कौन कितना बेहतर है , उद्दंड है , पिशाचवत है .

नैतिकता के पक्षधर इस उपन्यास से अवश्य निराश होंगे . अहिल्या के चरित्र में हम किसी आदर्श की कल्पना नहीं कर सकते परन्तु एक नारी जो अपने परिवार और बच्चों के साथ कपोत -व्रत धारण किये हुए सामान्य जीवन जी रही थी, उससे परिस्थिति वश भटकने का दर्द इस चरित्र में  बड़ी शिद्दत से दिखाई देता है . राम नामक एक फारेस्ट गार्ड के साथ जो उसका जो पहला सहज प्रेम हुआ उसमे नारी के नैसर्गिक  उल्लास की झलक मिलती है . सामान्य नारी की इन्ही सहज वृत्तियाँ के कारण वह अनेक प्रलोभनो में फंसकर जीवन भर पादरी, पंडित और धनाढ्यों के षड्यंत्रों का शिकार होती रहती है किन्तु यह षड्यंत्र ही उसे मांजते भी हैं वह विद्रोहिणी भी बनती है और गुपचुप तरीके से वह तीन हत्याएं भी ऐसी कुशल  योजना से करती है कि  उस पर किसी का संदेह तक नहीं होता . रोजलीन की आत्मा ने उसे मारीशस की सबसे हाई प्रोफाइल काल-गर्ल तो बनाया . पर अहिल्या रोजलीन के अतिचारों से ऊब चुकी थी . उसे अपने स्वतंत्र वजूद की  तलाश थी. वह रोजलीन से मुक्ति चाहती थी . इसके लिए उसने बहुत से यत्न किये. तंत्र का सहारा लिया पर सफलता नहीं मिली . अहिल्या की जिन्दगी  एक साधारण दौड़ से शुरू हुयी थी . कालान्तर में वह रेस में बदल गयी . इस रेस में वह स्वयम तो कभी  नहीं जीती किन्तु दूसरों की जीत का निमित्त अवश्य बनी . साठ वर्ष की अवस्था में जब उसकी ऊर्जा क्षीण हो गयी , उसे जीवन से विरक्ति हो गयी और एक दिन शाम के धुंधलके में वह कहीं गुम हो गयी . उसके शरीर तक का पता नहीं चला .

‘अहिल्या-एक सफ़र’  का विषय बोल्ड है, यह एक निर्विवाद सत्य है किन्तु इसकी सबसे बड़ी विशेषता वह विज़न है जो कुंती जी ने प्रस्तुत किया है . काम  या रति को पुरुष की दृष्टि से देखने के इतिवृत्त तो बहुत से हैं परन्तु उसे एक नारी की नजर किस रूप में लेती है और विशेषकर जब उसमे कल्पना और भावना का उन्मेष अपना वीभत्स रूप लेकर आता है तो चित्र कितने लोमहर्षक और स्तब्धकारी बनते है यह अपने आप में एक अलग अनुभव है जिसे कुंती जी ने उपन्यास में बड़ी शिद्दत से जीवंत किया है .

वैश्या का एक बड़ा ही जीवंत चरित्र प्रसिद्द कथाकार अमृतलाल नागर के उपन्यास ‘सुहाग के नूपुर’ में मिलता है . चूंकि  नागर जी चौक लखनऊ में रहे है और वेश्याओं का जीवन उन्होंने बड़े करीब से देखा है तथा ‘ये कोठेवालियां ‘ पुस्तक में उन अनुभवों को दर्ज किया है , इसलिये ‘सुहाग के नूपुर ‘ में वे माधवी के चरित्र के साथ न्याय कर सके है . उनकी गणिका विशुद्ध गणिका है और उसमे संवेदना बिलकुल भी नहीं दिखती . किन्तु यहाँ भी उसकी परख में दृष्टि एक पुरुष की है. ‘अहिल्या –एक सफ़र‘ में एक  नारी की आत्मनिवेदित कथा पर कुंती जी के रूप में एक दूसरी नारी की पारखी दृष्टि है और बहुत संभव है कि  यहाँ संवेदना का परस्पर संघात भी हुआ हो और दोनों ही नारियों की सम्वेदना ने एकाकार होकर कथा चित्रों को मार्दव प्रदान किया हो . पीड़ित होना एक अहम् अनुभव है . पीड़ित की पीड़ा का सविकार साक्षात् करना दूसरा अनुभव है और जब यह दोनों अनुभव एकाकार होते है तो मारीलूज आलेया जोजेफीन का अभिशप्त  अहिल्या के रूप में अवतरण होता है और तब शुरू होती है एक लंबी  अविराम यात्रा – अहिल्या एक सफ़र’ .  

(मौलिक व् अप्रकाशित )

Views: 1222

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
19 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"सभी सदस्यों से रचना-प्रस्तुति की अपेक्षा है.. "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service