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टुकटुक की दिवाली
आज दिवाली आई,खुशियाँ सबसे मन में लाई ।
पर पीपल के पेड़ पे बैठे ,टुकटुक की आफत आई।
दिन होते ही ज़ोर- ज़ोर से बच्चे बम हैं छुटाते ।
टुकटुक तोते के घर तक भी खूब अंगारे जाते।
टाँय टाँय कर बेचारे की माँ ने उसे बताया।
टुकटुक घर से बाहर न जा खतरा था दिखलाया ।
बेचारा टुकटुक राजा कुछ अटक -अटक कर बोला ।
थोड़ा सा कोटर काउसने दरवाजा था खोला।
और सरक कर प्यारा टुकटुक थोड़ा बाहर आया।
देख पटाखों की रौनक कुछ उसका मन भरमाया।
थोड़ा और सरक कर उसने पंख जरा फैलाए,
नीचे वाली डाल पे आकर पत्ते कुछ थे उड़ाए।
ज्यों बैठे वे वहाँ, अचानक एक पटाखा आया ।
टुकटुक तोते का छोटा सा जिया बड़ा घबराया।
जाने ही वाले थे अन्दर रॅाकेट एक था आया।
गरमी ने जिसकी टुकटुक का एक था पँख जलाया।
रोता -रोता टुकटुक माँ की ओर लपक कर भागा।
हाय! बिचारा नन्हा टुकटुक मारा गया अभागा
नीचे से कुछ सुन आवाज़ें बच्चे दौड़े आए।
देख बेचारे टुकटुक को इस तरह सभी पछताये।
बिना छुटाये बम-पटाखे, मनेगी अब दीवाली।
सभी जनों ने वहीं खड़े हो आज कसम थी खा ली।
मौलिक व अप्रकाशित

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Replies to This Discussion

बहुत सुंदर और अनुपम रचना अभिव्यक्ति  के लिए  हार्दिक  बधाई  

बाल-कविता की प्रस्तुति हेतु हार्दिक शुभकामनाएँ, आदरणीया ममताजी. सद्प्रयास की मैं भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहा हूँ. 

किन्तु, कविता लेखन कोई हो, वह समय और विश्वास की चाहना रखती है. इसके लिए विधाजन्य मेहनत करनी आवश्यक है. रचनाकर्म के मूलभूत गुणों की अनदेखी करना तो नहीं कहूँगा, लेकिन एक रचनाकार के तौर पर आपको सचेत और सचेष्ट रहना ही होगा. 

सादर

आ०श्याम नारायण वर्मा जी, आ० सौरभ जी धन्यवाद।
सौरभ जी आप ठीक ठह रहे हैं, कुछ जल्दबाजी तो हुई है,जिसका पता आपने बताया हैआपकी सीख आगे से ध्यान
सादर ममता रखूँगी।

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