For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अभिसार रति नहीं एक जोखिम या खतरा है //डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव

भिसार का अर्थ लोग प्रायशः प्रणय या काम-क्रीडा समझते हैं I यह सही अर्थ नहीं है I सही अर्थ है अभिसरण करना अर्थत गमन करना /जाना I अर्थ रूढ़ि में कहेंगे किसी रमणी का प्रिय से मिलने संकेत स्थल पर जाना या फिर नायक को बुलाना I दशरूपक के अनुसार जो नायिका स्वयं नायक के पास अभिसरण करे अथवा नायक को अपने पास बुलावे वह 'अभिसारिका' कहलाती है- 'कामार्ताभिसरेत्‌ कांतं सारयेद्वाभिसारिका'।

 संकेत स्थल वह स्थान है जिसे मिलने वाले युग्म ने सुरक्षित समझा हो I इसी से स्पष्ट हो जाता है कि अभिसार वह नारियां ही करती रही हैं, जो या तो कुमारिका थीं  या फिर पर-व्याहता I इन दोनों को अकीया या परकीया कहते हैं I स्वकीया मनुष्य की व्याहता होती है, उसे अभिसार और संकेत स्थल अर्थात समागम को चोरी से करने की आवश्यकता नहीं होती I अभिसार करने वाली नायिकाओं को अभिसारिका कहते हैं I यह भी तीन प्रकार की हैं –एक शुक्ल अभिसारिका या ज्योतिभिसरिका जो माह के शुक्ल पक्ष में विशेषकर चादनी रातों में अभिसार करना पसंद करती है और दूसरी कृष्ण अभिसारिका या तमोभिसारिका जिसे कृष्ण-पक्ष अर्थात अंधियारी रात में अभिसार प्रिय है I तीसरी दिवाभिसारिका, जिसे दिन प्रिय है I सामान्यतः अभिसारिका के ये ही तीन भेद है पर नायिका की अनुभवहीनता और अनुभवगम्यता के करण इन्हें मुग्धा और मध्या के रूप में भी विभक्त किया गया है I कुछ लोग गर्वाभिसारिका तथा कामाभिसारिका का उल्लेख भी करते है पर यह बात को बेवजह बढ़ाना मात्र है i

 इन अभिसरिकाओं की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि यह किसी भी जोखिम की परवाह नहीं करती थी और हर हद से गुजरने के लिए तैयार रहती थीं I  अभिसार में इन्हें बहुतेरे कष्ट भी उठाने पड़ते थे I रात हो जाये I घर वाले सब सो जाये I  चाँदनी में कोई देख न ले I देख ले तो पहचान न ले I सामाजिक वर्जना के प्रति यह किसी समय नारी की सबसे बड़ी क्रान्ति रही होगी I कृष्ण अभिसारिका के बारे में अनेक ऐसे उद्धरण मिलते है जिनमे उनकी उद्दाम दीवानगी प्रकट होती है I काली अंधियारी रात है I बादल गरज रहे है I बिजली कडक रही है I मूसलाधार पानी बरस रहा है I बेसुध अभिसरिका भागी चली जा रही है I उसकी सारी पानी से सराबोर है I पांवों में केवल कांटे ही नहीं चुभ रहे उनमें कभी सांप भी लिपट जाते हैं I भूत-पिशाच तथा डाइनें घूम रही हैं I जूनून की पराकाष्ठा है I इसका एक गद्यात्मक चित्र निम्नवत है -

 प्रियतम से मिलने के लिए बेचैनी तथा उतावलेपन की मूर्ति बनी हुई नायिका सिंह से डरी हरिणी के समान अपनी चंचल दृष्टि इधर उधर फेंकती हुई मार्ग में अग्रसर होती है । वह अपने अंगों को समेटकर इस ढंग से पैर रखती है कि तनिक भी आहट नहीं होती । हर डग पर शंकित होकर अपने पैरों को पीछे लौटाती है । जोरों से काँपती हुई पसीने से भीग उठती है । यह उसकी मानसिक दशा का जीता जागता चित्र है । वह अकेले सन्नाटे में पैर रखते कभी नहीं डरती । नि:शब्द संचरण भी एक अभ्यस्त कला के समान अभ्यास की अपेक्षा रखता है । कोई भी प्रवीण नायिका इसे अनायास नहीं कर सकती । घर में ही भविष्यत्‌ अभिसारिका को इसकी शिक्षा लेनी पड़ती है । वह अपने नूपुरों को जानुभाग तक ऊपर उठा लेती है । तथा आँखों को अपने करतल से बंद कर लेती है, जिससे 'रजनी तिमिरावगुंठित' मार्ग में वह बंद आँखों से भी भली भाँति आसानी से जा सके। वह अंगों को नीले दुकूल से ढक लेती है तथा प्रत्येक अंग में कस्तूरी से पत्रावलि बना डालती है। उसकी भुजाओं में नीले रत्न के बने कंकण रहते हैं । कंठ में 'अंबुसार' की पंक्ति रहती है और ललाट पर केश की मंजरी सी लटकती रहती है। कालिदास ने ‘मेघदूत में’ अभिसरिकाओं का काम-केलि का मोहक वर्णन किया है i हिन्दी में कवि विद्यापति की पदावली में इसके मोहक चित्र है I सूरदास और ज्ञानदास ने भी इनका व्यापक वर्णन किया है I  विद्यापति का एक अभिसार वर्णन यहाँ प्रस्तुत है -

चन्दा जनि उग आजुक राति। पिया के लिखिअ पठाओब पाँति।।

साओन सएँ हम करब पिरीति। जत अभिमत अभिसारक रीति।।

अथवा राहु बुझाओब हँसी। पिबि जनि‍ उगिलह सीतल ससी।।

कोटि रतन जलधर तोहें लेह। आजुक रयनि घन तम कए देह।।

भनइ विद्यापति सुभ अभिसार। भल जन करथि‍ परक उपकार।।

 इस पद में वि‍द्यापति‍ ने जि‍स अभि‍सार के लि‍ए नायि‍का के मनोभाव का चि‍त्रण कि‍या है. वह अभि‍सार पावस की चाँदनी रात में होने वाला है । अब चूँकि‍ उस अभि‍सार का सबसे बड़ा बाधक चन्द्रमा ही होगा, इसलि‍ए वह नि‍वेदन करती हुई कहती है—हे चन्दा ! तुम कृपाकर आज की रात मत उगो ! मैं अपने प्रि‍य को पत्र लि‍खकर भेज रही हूँ । सावन का महीना है । यह मास मुझे बहुत पसन्द है । मैं इस महीने से प्रेम करती हूँ । क्योंकि‍ इस मौसम में अभि‍सार बहुत सुलभ और आनन्दमय होता है, मुझे आज ही अपने प्रि‍यतम से मि‍लना है । तुम आज की रात मत उगो या फि‍र आज हँसी-खेल में समझा-बुझाकर, राहु को मनाऊँगी कि‍ वे इस शीतल चन्द्र (ससी) की कि‍रणें पी ले और रात भर न उगले या‍ सावन के इस बादल से नि‍वेदन करती हूँ कि‍ चाहें तो मुझसे लाखों-करोड़ों रत्न‍ ले ले, पर आज ऐसी घटा बन कर छायें कि‍ पूरी रात गहन अंधकार कर दे । हर भले लोग दूसरों का उपकार करना अच्छा मानते हैं।

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Facebook

Views: 386

Reply to This

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ravi Shukla commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों को केंद्र में रख कर कही गई  इस उम्दा गजल के लिए बहुत-बहुत…"
18 hours ago
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी, अच्छी  ग़ज़ल की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें. अपनी टिप्पणी से…"
18 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाई जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छी प्रयास है । आप को पुनः सृजन रत देखकर खुशी हो रही…"
18 hours ago
Ravi Shukla commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय बृजेश जी प्रेम में आँसू और जदाई के परिणाम पर सुंदर ताना बाना बुना है आपने ।  कहीं नजर…"
18 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
Thursday
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
Thursday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service