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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-2 (विषय: पहचान)

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर वन्दे।
 
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-१ में लघुकथाकारों ने बहुत ही जोशो खरोश से हिस्सा लेकर उसे सफल बनाया। लघुकथा विधा पर हिंदी साहित्य जगत का यह पहला आयोजन था जिस में तीन दर्जन से ज़्यादा रचनाकारों ने कुल मिलाकर ६५ लघुकथाएँ प्रस्तुत कीं। एक एक लघुकथा पर भरपूर चर्चा हुई, गुणीजनों ने न केवल रचनाकारों का उत्साहवर्धन ही किया अपितु रचनाओं के गुण दोषों पर भी खुलकर अपने विचार प्रकट किए।  कहना न होगा कि यह आयोजन लघुकथा विधा के क्षेत्र में एक मील का पत्थर भी साबित हुआ है। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है:
 .
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-२ 
विषय : "पहचान"
अवधि : 30-05-2015 से 31-05-2015 
(आयोजन की अवधि दो दिन अर्थात 30 मई 2015 दिन शनिवार से 31 मई  2015 दिन रविवार की समाप्ति तक)
.
अति आवश्यक सूचना :-
१. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक सर्वश्रेष्ठ लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
२.सदस्यगण एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हलकी टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
३. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
४. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी लगाने की आवश्यकता नहीं है।
५. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
६.  नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
७. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
८. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं। रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें।
९ . सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर केवल एक बार ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
.
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 30 मई 2015, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा)
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
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आदरणीया माला जी कथा के मर्म तक पहुँच के आपने जो  सार्थक प्रतिक्रिया दी है उसके लिए आभारी हूँ. 

"हे भगवान! इसने मेरा धरम भरस्ट कर दिया।  पंक्ति पढ़ते ही ही ज्यूँ एक आघात सा लगा | मानसिकता को दर्शाती अति उत्तम कथा बधाई आ. मिथिलेश जी . सादर 

आदरणीय सुधीर जी लघुकथा के प्रयास पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

आदरणीय मिथिलेश भाई

हर व्यक्ति का दोहरा चरित्र होता है। समय  परिस्थिति  उम्र और ज़रूरत के अनुसार चरित्र उभर  कर आता है। लक्ष्मी एकांत  में मिल जाय तो यही बाबानुमा भिखारी उसके चरणों में होगा।

हार्दिक बधाई इस लघु कथा पर । 

आदरणीय अखिलेश सर  लघुकथा के प्रयास पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

आपने सही कहा 

 

वाह आदरणीय मिथिलेश जी, इसबार अपेक्षाकृत अच्छी लघुकथा प्रस्तुत हुई है, कथ्य और शिल्प पर कथा अधिक सुन्दर बन पड़ी है किन्तु अभी कथा और गठन की मांग करती है.

//बाबानुमा मुंह से टपक रही लार, कम-से-कम, उस पाव-भाजी के कारण नहीं है; ये लक्ष्मी के गदराये बदन की चुभती सिहरन, बखूबी पहचान चुकी थी।//

इसी तरह कुछ और वाक्यों के निरर्थक अंश को हटाकर लघुकथा को अधिक सुघढ़ कर सकते है. इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई प्रेषित है.

आदरणीय बागी सर लघुकथा के प्रयास पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

आपने सही कहा ये वाक्यांश  कथा प्रवाह में जबरन घुसाए प्रतीत हो रहे है 

आदरणीय सौरभ सर को दि प्रतिक्रिया में इसे स्पष्ट कर चुका हूँ पुनः 

बाहर के तपते बदन की गर्मी को भीतर महसूस करता हुआ और 

 के गदराये बदन की चुभती सिहरन, 

जलजला बरपाती एक और ट्रेन, स्टेशन पर बिना रुके, कान फाड़ती हुई निकल चुकी थी।

 

आदरणीय मिथिलेश जी, 

सुन्दर कथा. बाबानुमा सूरत लिये भिखारी के भूख को बडे़ सुन्दर ढ्ंग से चित्रित किया है. 

सादर.

आदरणीय  Shubhranshu Pandey जी लघुकथा के प्रयास पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

आदरणीय मिथलेश वामनकर सर, सफल और शीर्षक को सार्थक करती लघु-कथा के लिए बधाईयाँ. कई पहचान उजागर हुईं. बाबा की लोलुपता से लेकर लक्ष्मी के संयमित व्यवहार तक.' साथ ही कथा के लिए प्लेटफॉर्म जैसे सार्वजनिक स्थल का चयन भी प्रभावित किया. बधाई आपको.

आदरणीय सुनील जी लघुकथा के प्रयास पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभार.

भिखारी की जोरदार चीख उसके कानों में पड़ी- "हे भगवान! इसने मेरा धरम भरस्ट कर दिया।" 

अचानक एक और पहचान उभर आई थी- भिखारी की भी और लक्ष्मी की भी। ----अंतिम पंक्ति लघु कथा के शीर्षक को सार्थक कर रही हैं

समाज में ऐसे दोगुले चरित्र के लोग ही इस समाज को कलंकित कर रहे हैं ,बहुत बढ़िया लघु कथा हेतु दिल से बधाई मिथिलेश भैया | 

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