For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

घनाक्षरी या कवित्त को मुक्तक भी कहते हैं. इसके सार्थक कारण हैं.

इस छन्द के पदों में वर्णों की संख्या तो नियत हुआ करती हैं, किन्तु, छन्द के सभी पद वर्णक्रम या मात्राओं की गणना से मुक्त हुआ करते हैं. यानि अन्य किसी वर्णिक छन्द की तरह इसके गण (वर्णों का नियत समुच्चय) सधे हुए नहीं होते कि गणों की कोई व्यवस्था बने. अर्थात सगण या भगण या ऐसे ही गणों की पदों में आवृतियाँ नहीं बनती. उदाहरण के लिए सवैया को लीजिये.

देखा जाय तो यही वर्णक्रम मुक्तता छन्द को विशेष बनाती है. तदनुरूप, छन्दकारों का दायित्व भी बढ़ जाता है कि वे रचनाकर्म के क्रम में सचेत रहें. अन्यथा वाचन में प्रवाहभंग या लयभंग की स्थिति अनायास ही बन जाती है.


इसी कारण पदों में प्रयुक्त शब्दों के कलों पर विशेष ध्यान रखा जाता है ताकि पदों के वाचन के क्रम में लयभंगता की स्थिति न बनने पाये.

सम कलों वाले शब्दों के बाद सम कल के शब्दों का आना तथा विषम कलों के शब्द के बाद विषम कलों के शब्दों का आना वस्तुतः लयभंगता के दोष को समाप्त करने में सहायक होता है.

वर्णों की गणना के समय एक व्यंजन या व्यंजन के साथ संयुक्त हुए स्वर को एक वर्ण माना जाता है. संयुक्ताक्षर को एक ही वर्ण मानने की परम्परा रही है.

उदाहरण, 
शस्य-श्यामला  सघन,  रंग-रूप से मुखर देवलोक की नदी  है आज रुग्ण दाह से
लोभ मोह स्वार्थ मद  पोर-पोर घाव बन  रोम-रोम रीसते हैं,  हूकती है  आह से

यहाँ ’शस्य’ दो वर्णों का शब्द हुआ. उसी तरह ’श्यामला’ तीन वर्णों का शब्द है.
साथ ही, उपरोक्त पदों में पहले पद के माध्यम से यह भी देखा गया कि ’शस्य’ त्रिकल है तो उसके ठीक बाद ’श्यामला’ ऐसा शब्द है जो पंचकल है और मात्रा भार के अनुसार रगण (ऽ।ऽ, गुरु-लघु-गुरु) शब्द है. अतः ’शस्य’ के त्रिकल, जिसका कि मात्रा-भार गुरु-लघु है, के ठीक बाद श्याम+ला शब्द, जो कि त्रिकल+द्विकल बनाता है, का आना त्रिकल के बाद त्रिकल शब्द की सटीक व्यवस्था बना देता है. और वाचन में लयभंगता नहीं होती.

उपरोक्त व्यवस्था को घनाक्षरी के सभी पदों में चरणवत निभाना है.

छन्द शास्त्र के नियमानुसार इस छन्द के कुल नौ भेद पाये जाते हैं. किन्तु, मुख्य घनाक्षरियाँ चार हैं.

यथा, मनहरण घनाक्षरी, जलहरण घनाक्षरी, रूप घनाक्षरी तथा देव घनाक्षरी.


मनहरण घनाक्षरी - चार पदों के इस छन्द में प्रत्येक पद में कुल वर्णों की संख्या ३१ होती है. सभी पदों में नियमानुकूल तुकान्तता हुआ करती है. पदान्त में गुरु का होना अनिवार्य है. लघु-गुरु का कोई क्रम नियत नहीं है. परन्तु, वाचन को सहज रखने के लिए पदान्त को लघु-गुरु से करने की परिपाटी रही है.

विशेष परिपाटी जिसके प्रचलन से इस छन्द को वस्तुतः नियत किया जाता है, उसके अनुसार प्रत्येक पद चार चरणों में विभक्त होता है तथा प्रत्येक चरण में वर्णों की संख्या क्रमशः ८, ८, ८, ७ की यति के अनुसार हो. तथा, पदान्त लघु-गुरु से हो.
एक तथ्य पर हम अवश्य दृढ़ रहें कि मगण (मातारा, गुरु-गुरु-गुरु, ऽऽऽ, २ २ २) से पदान्त न हो. अन्यथा वाचन के क्रम में लयभंगता अवश्य बनेगी.

कहीं-कहीं चरणों के वर्ण की गणना के अनुसार आंतरिक व्यवस्था ८, ७, ९, ७ या ऐसी ही कुछ हो सकती है. ऐसा होना कोई वैधानिक दोष नहीं है. परन्तु ध्यान से परखा जाय तो आंतरिक व्यवस्था चाहे जो हो, शाब्दिक कलों का निर्वहन सहज ढंग से हुआ है, तो छन्द वाचन में या पद-गायन में कोई असुविधा नहीं होती. और छन्द निर्दोष माना जाता है.


छन्दशास्त्र के कई विद्वान इसी कारण मनहरण घनाक्षरी के पदों की यति १६, १५ पर साधते हैं. परन्तु, ऐसा करना भी पद को कम्पार्टमेण्टलाइज करने की तरह नहीं होता. यानि, यह भी देखा गया है कि कई बार १६-१५ की यति भी १७-१४ या १५-१६ की व्यवस्था में हुआ करती है.  

उदाहरण के लिए एक घनाक्षरी के दो और पद लिये जाते हैं, जो कि मनहरण घनाक्षरी के विशिष्ट रूप में हैं.

हम कृतघ्न पुत्र हैं या दानवी प्रभाव है, स्वार्थ औ प्रमाद में ज्यों लिप्त हैं वो क्या कहें
ममत्व की हो गोद या सुरम्यता कारुण्य की, नकारते रहे सदा मूढ़ता को क्या कहें 


उपरोक्त पदों में १६-१५ की बनती है. यानि शब्दों की व्यवस्था ऐसी है कि वाचन में प्रवाह तनिक भंग नहीं होता.

शब्द व्यवस्था को साधने के लिए एक और तथ्य पर ध्यान देना उचित होगा -
सम-विषम-विषम, या,  विषम-सम-विषम जैसी व्यवस्था में नियत हुए शब्दों के प्रयोग पदों में लयभंगता की स्थिति उत्पन्न कर देता है.
जैसे,  
ममत्व की हो गोद या’  को ’गोद या ममत्व की हो’ किया जाय तो चरण में समान वर्ण होने के बावज़ूद लयभंगता बन रही दीख रही है.

कारण कि, ’गोद’ त्रिकल (विषम) के बाद ’या’ जैसा द्विकल (सम) और ’ममत्व’ के कारण पुनः त्रिकल से प्रारम्भ हो रहे शब्द का आना है. अतः इसे नकारने के लिए ’ममत्व की हो गोद या’  जैसी व्यवस्था में शब्द को साधना होता है.

फिर, ’ममत्व की हो’ वाक्यांश होने से ’ममत्व’ के ’मत्व’, जोकि त्रिकल शब्द है, के बाद ’की हो’ के आने से चौकल आना हो जाता है. अर्थात, त्रिकल के बाद चौकल आ रहा है. ऐसी शाब्दिक व्यवस्था सर्वथा त्याज्य है.

कहने का तात्पर्य यह है कि हम पदों में चाहे जो शाब्दिक व्यवस्था बनायें, पर शब्द-कल तथा यति के प्रभाव तथा पद-प्रवाह सहज रहें.

मनहरण घनाक्षरी के उदाहरण प्रस्तुत हैं.

१.
शस्य-श्यामला  सघन,  रंग-रूप से मुखर देवलोक की नदी  है आज रुग्ण दाह से
लोभ मोह स्वार्थ मद  पोर-पोर घाव बन  रोम-रोम रीसते हैं,  हूकती है  आह से
जो कपिल की आग के विरुद्ध सौम्य थी बही अस्त-पस्त-लस्त आज दानवी उछाह से
उत्स है जो सभ्यता व उच्च संस्कार की वो सुरनदी की धार आज रिक्त है प्रवाह से      (इकड़ियाँ जेबी से / लेखक - सौरभ पाण्डेय)

२.
नीतियाँ बनीं यहाँ कि तंत्र जो चला रहा वो श्रेष्ठ भी दिखे भले परन्तु लोक-छात्र हो
तंत्र  की  कमान  जन-जनार्दनों के  हाथ हो,  त्याग  दे वो राजनीति जो लगे कुपात्र हो
भूमि-जन-संविधान,  विन्दु  हैं  ये  देशमान,  संप्रभू  विचार में न  ह्रास लेश मात्र हो
किन्तु  सत्य  है यही  सुधार हो सतत यहाँ, ताकि राष्ट्र का समर्थ शुभ्र सौम्य गात्र हो     (स्वप्रयास से)
***********************

-- सौरभ


ज्ञातव्य : उपलब्ध जानकारियों के आधार पर आलेख विकसित हुआ है.
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 16945

Replies to This Discussion

आ. भाई सौरभ जी ,
अति सुंदर और महत्त्वपूर्ण जाकारी पढ़कर खुश हूँ 
लय और लय भंग के लिए विस्तार देकर आलेख को विशिष्टता प्रदान किया है आपने 
सादर बधाई व धन्यवाद ! 

आपको प्रस्तुत आलेख सार्थक लगा इसके लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीया छायाजी.

संप्रेषणीयता के हिसाब से कहीं कुछ गुंजाइश बन रही हो तो अवश्य साझा कीजियेगा.

सादर

आदरणीय सौरभ जी

 आपने मनहरण घनाक्षरी  को बहत स्पष्ट रूप से और विस्तार  से बताया  I  शत - शत  आभार I मेरे संज्ञान में घनाक्षरी  (8 8 ,8 8 )कुल बत्तीस वर्ण की होती है  I क्या 32 वर्णों  वाली घनाक्षरी  भी घनाक्षरी के भेदों मे से एक है  I या फिर वह पृथक छंद है i कृपया मार्ग दर्शंन करना चाहे I  सादर i  

आदरणीय गोपाल नारायनजी,

छन्द शास्त्र के नियमानुसार इस छन्द के कुल नौ भेद पाये जाते हैं. किन्तु, मुख्य घनाक्षरियाँ चार हैं.

यथा, मनहरण घनाक्षरी, जलहरण घनाक्षरी, रूप घनाक्षरी तथा देव घनाक्षरी.


वस्तुतः रूप घनाक्षरी, जलहरण घनाक्षरी (जनहरण घनाक्षरी नहीं), देवघनाक्षरी, विजया घनाक्षरी ऐसे ही भाग हैं जिनके कुल वर्ण ३२ होते हैं.
हम यहाँ चर्चा मनहरण घनाक्षरी की कर रहे हैं. जो सभी घनाक्षरियों में सबसे अधिक प्रसिद्ध तथा अनुमन्य है.

सादर

आदरणीय सौरभ पाण्डे सर घनाक्षरी छंद को सुन्दर तरीके से समझाया है आपने इस छंद के बारे में इतनी विस्तृत जानकारी देकर , विशेष रूप से लय तथा लय भंग समझाकर काफ़ी महत्वपूर्ण बात बताई है जो गेय/लयबद्ध सभी रचनाओं में ध्यान देने योग्य है. इस अमूल्य ज्ञानवर्धन के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद.. आभार 

जय-जय !!

पूज्यवर, 

अतिमहत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया । 

विनम्र प्रणाम   । 

हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय नवनीत राय ’रुचिर’ जी

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service