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हार्दिक आभार आदरणीय जानकी वाही जी
आदरणीया रजनी जी, विषय अनुरूप बढ़िया लघुकथा हुई है. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. लघुकथा पर पुनः आता हूँ. सादर
आदरणीया रजनी जी, प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है. रिश्वतखोरी की कलई खोलते हुए कथ्य को बढ़िया शाब्दिक किया है. कभी कभी प्यादे भी अपना काम कर जाते है. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई
कथा को पसंद करने तथा उत्साह वर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी
आपकी प्रतिक्रिया मेरे कहे को आश्वस्त करती हुई है. हार्दिक आभार
रिश्वत के खेल में चोर चोर मौसेरे भाई तो होते हैं लेकिन सच में कई बार प्यादा भी राजा को मात दे देता है, इस सच को उजागर करती रचना हेतु सादर बधाई प्रेषित है आदरणीया रजनी जी| साथ ही एक बात और कहना चाहूँगा आदरणीय योगराज जी सर ने कई सारी बातों में से एक बात यह भी सिखाई है कि "लेखक" स्वयं को लघुकथा में न रखे, जैसे आपने स्वयं को रखा है| सादर,
कथा को पसंद करने तथा कथा में उपस्थित त्रुटियों को इंगित करने के लिए, जिससे भविष्य में लेखन करते समय इन त्रुटियों से बचा जा सके इस के लिए हार्दिक आभार आदरणीय चंद्रेश कुमार छतलानी जी! सादर
वाह रजनी जी अच्छी बुनी कहानी . हर खिलाडी खुद को सबसे बड़ा समझता है ,पर एक ना एक दिन ऊंट पहाड़ के नीचे आता ही है .
आपका हार्दिक आभार आदरणीय रीता गुप्ता जी
आपका हार्दिक आभार आदरणीय नीता कासर जी
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