For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।
 
पिछले 51 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-52

विषय - "डोर/धागा"

आयोजन की अवधि- 13 फरवरी 2015, दिन शुक्रवार से 14 फरवरी 2015, दिन शनिवार की समाप्ति तक  (यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

 
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए.आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम दो स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक ही दे सकेंगे, ध्यान रहे प्रति दिन एक, न कि एक ही दिन में दो.  
  •  रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.


सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 13 फरवरी 2015, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तोwww.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालिका 
डॉo प्राची सिंह 
(सदस्य प्रबंधन टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

Views: 14427

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले सर, रचना की सराहना एवं उत्साहवर्धन करती सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभार...

आदरणीय मिथिलेश जी, विषयानुरूप बहुत सुंदर प्रस्तुति. बहुत-बहुत बधाई

आदरणीय  जितेन्द्र पस्टारिया जी रचना पर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार 

अभी विशाल रात है, अभी सुदूर भोर है
मधुर-मधुर मुलायमी समय विशिष्ट डोर है

वाह आदरणीय नमन आपकी कलम और आपकी कल्पना को। आपकी इस दिलकश प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय मिथिलेश जी।

आदरणीय सुशील सरना सर, आपके स्नेह, सराहना और मुक्तकंठ प्रशंसा से अभिभूत हूँ. आभार. नमन 

आदरणीय मिथिलेश भाई ,बहुत शानदार रचना वो भी  पञ्च चामर छंद , शानदार ...ये पंक्तियाँ  तो विशेष सुन्दर , आनंद आ गया 

//मुझे सुनो डरा सके न बादलों की ओट अब

भरम तनिक जगा सके न देवता की चोट अब

अमर्त्य प्रेम की कथा सुनो तुम्हे सुना रही

शरीर में मचा हुआ अजीब आज शोर है//... बहुत बहुत  बधाई !

आदरणीय हरिप्रकाश भाई जी आपकी प्रतिक्रिया की सदैव प्रतीक्षा होती है, आपकी प्रतिक्रिया से रचनाकर्म हेतु सदैव प्रोत्साहन मिलता है. इस सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार ... आपकी प्रस्तुति की प्रतीक्षा कर रहा था. सादर 

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी, मंच संचालिका महोदया, गुनीजनों के मार्गदर्शन अनुसार रचना में संशोधन किया है. कृपया निवेदन है कि यदि संभव हो तो संकलन में रचना इस रूप में संकलित करने का कष्ट करे-

कपास की बिनौलियाँ मचा रही किलोर है

कवित्त में प्रतीक जो प्रदाय आज डोर है

अभी विशाल रात है, अभी सुदूर भोर है

मधुर-मधुर मुलायमी समय विशिष्ट डोर है

 

न सांस से, न आस से, शरीर से न प्राण से

न वासना, न वेदना, किसी न दिव्य बाण से

प्रभावशून्य मन हुआ, न कामना यहाँ रही

पिया हृदय बसे विराट भाव से विभोर है

 

हृदय खिला-खिला यहाँ तरंग सी हिलोर है

पिया समीप  टूटती अजीब सांस डोर है

 

मुझे सुनो डरा सके न बादलों की ओट अब

भरम तनिक जगा सके न देवता की चोट अब

अमर्त्य प्रेम की कथा सुनो तुम्हे सुना रही

शरीर में मचा हुआ अजीब आज शोर है

 

उदीप्त प्रेम भावना अभी नवल-किशोर है

कहाँ चले हो चन्द्रमा यहाँ विकल चकोर है

 

गरीब को अमीर को समान रूप पालना

सहज नहीं, सरल नहीं, विशाल जग सँभालना

असंख्य पुण्य-पाप का विलेख रोज बाँचना

अनंत शक्तिमान की असीम बागडोर है

 

अदृश्य शक्ति का जगत, न ज्ञात ओर-छोर है

पतंग सा न मान लो, समय सशक्त डोर है

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

अवश्य आ० मिथिलेश जी 

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी 

आयोजन की शुरुवात आपके बहुत ही उन्नत गीत से हुई है.. कल से दो-तीन बार आपका यह गीत पढ़ गयी..हर बार सोचा कि जल्दबाजी में टिप्पणी करना आपकी अभिव्यक्ति के साथ अन्याय होगा..लेकिन कई कई व्यस्तताओं के चलते इस बार महोत्सव के संचालन दायित्य के साथ भी न्याय संभव न हो सका.

समय जो सदा से ही अवस्थित है उसी में सब कुछ घटित हो रहा है... उसे आधार बना कर जिस खूबसूरती से आपने विराट की शक्ति और अभिव्यक्ति को शब्दबद्ध किया है....उस पर तहे दिल से बहुत बहुत बधाई प्रेषित है..

गीत की लय १२१२१२१२१..बहुत खूबसूरती से साधी है..

बहुत बहुत शुभकामनाएं 

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी, रचना पर आपकी उपस्थिति से धन्य हुआ  और फिर सराहना और प्रशंसा पाकर अभिभूत हूँ. हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. हार्दिक धन्यवाद. 

दोहे --- विषय - "डोर / धागा"

 

एक डोर है प्रेम की, इक फंदा कहलाय।

जीवन कहीं हुआ शुरू, कहीं अंत हो जाय॥

 

सूत लपेटे पेड़ में, है अटूट विश्वास।

स्वस्थ सुखी परिवार हो, बस इतनी है आस॥

 

डोरी कटी पतंग की, आवारा हो जाय।

इधर-उधर उड़ती फिरै, ठौर कहीं ना पाय़॥

वस्त्र बुने जिस सूत से, काम हर समय आय।

एक पहन फेरे लिए, एक कफन बन जाय॥

राखी रंग बिरंग के, पवित्र बहन का प्यार।

आते हैं यमराज भी, यमुनाजी के द्वार॥

 

मोह काम के जाल में, फँसकर मद में चूर।

सांसारिक सुख ने किया, प्रभु से हमको दूर॥

 

जिन हाथों में डोर है, जग को वही नचाय।

कठपुतली असहाय हम, सादर शीश नवाय॥

 

..........................................................

मौलिक  अप्रकाशित    

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद जी आदाब, बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई है बहुत बधाई।"
4 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"लक्ष्मण धामी जी अभिवादन, ग़ज़ल की मुबारकबाद स्वीकार कीजिए।"
4 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय दयाराम जी, मतले के ऊला में खुशबू और हवा से संबंधित लिंग की जानकारी देकर गलतियों की तरफ़…"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी, तरही मिसरे पर बहुत सुंदर प्रयास है। शेर नं. 2 के सानी में गया शब्द दो…"
6 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"इस लकीर के फकीर को क्षमा करें आदरणीय🙏 आगे कभी भी इस प्रकार की गलती नहीं होगी🙏"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय रिचा यादव जी, आपने रचना जो पोस्ट की है। वह तरही मिसरा ऐन वक्त बदला गया था जिसमें आपका कोई…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय मनजीत कौर जी, मतले के ऊला में खुशबू, उसकी, हवा, आदि शब्द स्त्री लिंग है। इनके साथ आ गया…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी ग़जल इस बार कुछ कमजोर महसूस हो रही है। हो सकता है मैं गलत हूँ पर आप…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बुरा मत मानियेगा। मै तो आपके सामने नाचीज हूँ। पर आपकी ग़ज़ल में मुझे बह्र व…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, अति सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तस्दीक अहमद जी, सादर अभिवादन। लम्बे समय बाद आपकी उपस्थिति सुखद है। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल 221, 2121, 1221, 212 इस बार रोशनी का मज़ा याद आगया उपहार कीमती का पता याद आगया अब मूर्ति…"
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service