For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-117 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-117
विषय : डायरी के पन्ने
अवधि : 30-12-2024 से 31-12-2024 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, 10-15 शब्द की टिप्पणी को 3-4 पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाए इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सकें है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

Views: 99

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

मेरी डायरी
रात फड़फड़ाहट की ध्वनि से मेरा स्वप्न - भंग हुआ।सामने मेरी डायरी के पन्ने खुले पड़े थे।जनवरी मुस्कुराई।उसने पूछा, 'मेरे साथ उमड़ी उम्मीदें पूरी हुईं क्या?'
'उम्मीदें पूरी की पूरी कब पूरी हुई हैं?मैंने ऊंघते हुए कहा।
'बची- खुची मेरे संग मुकम्मल कर लेते, कि नहीं?' फरवरी फुर्ती से बोली।मैने उसे ढंग से निहारा।आस की भाँति वह सामान्य से थोड़ी बड़ी लगी।देश - विदेश के लड़ाई - झगड़े का हिसाब लिए वह अड़ी रही।
'अरे ओ गाल -गुलाल के रसिया! मेरे संग का अनुभव कहीं आजमाया क्या?कैसा रहा?बताओ तो।' मार्च वाला पन्ना रंगीनी लिए पूछ बैठा।
' मन तो बहुत किया कि तेरा नुस्खा आजमाऊँ,पर जमाने का रंग देख मन मारे रहा।कौन मजनूं बन पिटता फिरे?' मैने दिल पर पत्थर रख मन की बात कह दी।
' हाहाहा .....',अप्रैल उद्धत - सा हँसा,बोला,'फूल तो बहुत बिखेरे होंगे तुमने।बहुतों को बनाया होगा।मैं तुम्हें खूब जानता हूँ।'
'औरों को बनाने में मैं खुद ही बनाया जाता रहा।अब तुम तो न बनाओ।' मैने आह भरी।
मई मेल का संदेश पढ़ गई।हर साल की  ग्यारह तारीख अपनी गाँठ - बंधाई का उत्सव बन मन में उमंग और तन में तरंग भरती आई है।रात भी वैसा ही हुआ।
जून वाला पन्ना गर्मी के साथ महंगाई का रोना रोता रहा।उसका ध्यान विशेष तौर पर सब्जियों के भाव पर केंद्रित था।
जुलाई महंगाई और उमस से खिन्न मन की धरती पर कुछ बूंदाबूंदी लिए आई थी।ख्वाहिश की सूखती दूब हरी होने लगी थी।
अगस्त ने आजादी का गीत गाया।सो गया।मैं जगा हुआ आजादी की वयस के वर्षों की गिनती करता रहा।लाभालाभ पर सिर धुनता रहा।
सितंबर - अक्टूबर के पन्ने साथ - साथ उभरे।उन्होंने जाड़े के शुरुआत की सूचना दी।जोड़ों के जुड़ने की मुनादी हुई।बापू की जयंती पर उनकी मूर्ति के नीचे जयकारे के बीच भ्रष्ट आचरण पर स्वच्छाचार की मुहर लगी।सभा विसर्जित हुई।
नवंबर ने अपने नामानुरूप नए आकाश की उद्घोषणा की जिसका अनंत विस्तार ' वसुधैव कुटुंबकम्' की ओर इंगित कर रहा था।
दिसंबर का पन्ना सहमा - सा उभरा।कुछ पूरा था,कुछ अधूरा।उसमें वर्ष भर के दर्द और उल्लास सिमटे हुए थे।जन - समूह संचित दर्द को उल्लास में परिवर्तित करने का मिथ्याभ्यास कर रहा था।मुझे झपकी आई।फिर किसी ने मुझे मंद - मंद - सी थपकी दी। टेरा। मेरीआँखें खुलीं।जनवरी मुस्कुराई।
"मौलिक एवं अप्रकाशित"

सादर नमस्कार। हार्दिक बधाई गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन सृजन से करने हेतु जनाब मनन कुमार सिंह जी।

विषयांतर्गत इतनी गंभीर लघुकथा पढ़ने को मिलेगी, सोचा न था। बहुत दिनों बाद आपकी लेखनी की इतनी सुंदर लघुकथा पढ़ी। कैलेंडर , डायरी के पन्नों में दर्ज कथा-व्यथा, वर्ष भर के महीनों का लेखा-जोखा और इन सबका मुख्य पात्र से सपने में कथनोपकथन , प्रतीकात्मकता और भावाव्यक्तियाॅं सब कुछ बख़ूबी बुनते हुए सार्थक सृजन हुआ है मेरी दृष्टि में। ऐसा जैसे कि उपन्यास या एक आत्मकथा  सुनाई रही हो लघुकथा ।  प्रत्येक माह की तासीर/गतिविधियों अनुसार बेहतरीन कथनोपकथन। साथ में मुख्य पात्र के निजी अनुभवों से अवगत करातीं प्रतिक्रियाएं (जवाबी संवाद)। पुनः हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। रचना बार-बार पढ़ने को मन हो रहा है कहे और अनकहे को बेहतर समझने हेतु।

हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।प्रेरणा और प्रोत्साहन के शब्द दिल को छू रहे हैं।लघुकथा का विषय तीन दिनों से मस्तिष्क में चक्कर काट रहा था।कैसे और कहाँ से शुरू हो,यही मुद्दा था।अंततोगत्वा साल के अंतिम दिवसांत में मार्ग सूझा और अल्प समय में लघुकथा आकर ले चुकी थी।पुनः आपका आभार।

बोलते पन्ने (लघुकथा) :


डायरी के जितने पन्नों में विभिन्न रस छोड़ते शब्द जितने भी राग गा रहे थे, उनसे दो-चार होते हुए डायरी लेखक त्यागी जी उससे ज़्यादा ऑंसू पर ऑंसू बहा रहे थे। तीन दिसम्बर को कबूतरी ने बालकनी के सूखे गमले में दो बच्चे पैदा किए। बच्चे दस दिन के ही हुए थे कि डायरी का बारह दिसम्बर का पन्ना बता रहा था कि बालकनी में सुबह ख़ून पाया गया। उन दो बच्चों में से एक का सिर कोई बिल्ली या कबरबिज्जू खा गया था। शेष शरीर नीचे ज़मीन पर पाया गया। पिछली दफ़े कबूतर के दो बच्चे इसी तरह मारे गए थे। अगले पन्ने बता रहे थे कि दूसरे बच्चे की जान बचाने किस तरह उसका पालन-पोषण त्यागी जी ने किया। उन्होंने मंगलू नाम रखा था उसका। वह मंगलू से घुल-मिल गया लेकिन बड़ी मुश्किल से। अगले पन्ने बारी-बारी से पलटे गये। मंगलू अब पूरा कबूतर लगने लगा था। उड़ान की कोशिश भी करने लगा था। त्यागी जी ने उसे पिंजरे में न रखकर वैसे ही सूखे गमले में रखा और पाला था। उसके माता-पिता दिन में तीन बार भोजन कराने आते थे और अब तो वे उसे उड़ना सिखा रहे थे। त्यागी जी रो ही पड़े, जब अंतिम पन्ने ने बताया कि मंगलू तो उड़ गया। मंगलू के माता-पिता की पेरेंटिंग और प्रशिक्षण से उन्हें समझ आया कि उनसे पेरेंटिंग में कहाॅं चूक हुई और उनके दोनों बच्चे परदेस को उड़े, तो लौटे क्यों नहीं।

(मौलिक व अप्रकाशित)

उड़ने की चाह आदत भी बन जाती है।और जिन्हें उड़ना आता हो,उनके बारे में कहना ही क्या? पालो, खुद में ढालो,पर प्रतिभा बचा लो,तो जानें।प्रतिभा -पलायन कोई नई बात नहीं है।कबूतर के बच्चे ब्याज आपने कटु सत्य उपस्थापित किया है।ढेर सारी बधाइयां, आदरणीय उस्मानी जी।

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लेखन के विपरित वातावरण में इतना और ऐसा ही लिख सका। आपने मर्म को समझ लिया, लेखन प्रयास सफल हो गया।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++   बरसों बाद मेला है, खूब ठेलम ठेला है, भीड़ बहुत भारी है,…"
5 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"सुगढ़ कवित्त प्रस्तुति, आदरणीय अशोक भाईजी  मैं पुन: उपस्थित होता हूँ। "
42 minutes ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   संगम  के  तट  पर, संतो  का  जमावड़ा  है, एक…"
2 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
16 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 175 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है |इस बार का…See More
16 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Tuesday
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आद0 सुरेश कल्याण जी सादर अभिवादन। बढ़िया भावभियक्ति हुई है। वाकई में समय बदल रहा है, लेकिन बदलना तो…"
Tuesday
नाथ सोनांचली commented on आशीष यादव's blog post जाने तुमको क्या क्या कहता
"आद0 आशीष यादव जी सादर अभिवादन। बढ़िया श्रृंगार की रचना हुई है"
Tuesday
नाथ सोनांचली commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post मकर संक्रांति
"बढ़िया है"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

मकर संक्रांति

मकर संक्रांति -----------------प्रकृति में परिवर्तन की शुरुआतसूरज का दक्षिण से उत्तरायण गमनहोता…See More
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

नए साल में - गजल -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पूछ सुख का पता फिर नए साल में एक निर्धन  चला  फिर नए साल में।१। * फिर वही रोग  संकट  वही दुश्मनी…See More
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service