आदरणीय डॉक्टर साहेब आपके द्वारा रचित खंडकाव्य मेघदूत का कथानक पढ़ा .बड़ा साहसिक कदम उठाया है आपने .आपने मेरी जिज्ञासा बहुत बढ़ा दी है .पूरा मेघदूत पढ़ने के लिए मन लालायित हो उठा है . आशा करता हूँ की बहुत जल्दी आपका खंडकाव्य पढ़ने को मिलेगा .महाकवि कालिदास की रचना का हिंदी काव्यानुवाद कितना बड़ा कार्य है और इसके लिए कितनी हिम्मत चाहिए मैं समझ सकता हूँ .किन्तु आपने इस कार्य को पूर्ण करके सामान्य जनमानस को भी मेघदूत की जो सौगात भेंट की है उसके लिए हिंदी साहित्य सदैव आपका ऋणी रहेगा . आप ऐसे ही पुनीत कार्य करते रहें .हमारी शुभकामनाएं सदैव आपके साथ हैं .
आ. गोपाल नारायन सर, ये घटना मेरे सामने की है(मेरे परम मित्र के साथ घटी हुई) इसीलिए मैंने इस पर लिखने का प्रयास किया है. एक प्रयास थी इस संवेदनशील मुद्दे पर लिखने की, काफ़ी कमियाँ रह गई हैं. सुधरा हुआ रूप निकट भविष्य में पुनः आप सभी श्रेष्ठ एवं गुणीजनों के समक्ष प्रस्तुत करूँगा. कहानी पर समय देकर मार्गदर्शन के लिए आपको कोटिशः धन्यवाद. आपके द्वारा इंगित किए गए बिन्दुओं पर काम करके यह कहानी पुनः पोस्ट करूँगा.
आ. डॉ गोपाल नारायण जी ,,,कविता के इस मंच पर ,,अपना मित्र बनाकर आपने मुझे पुरस्कार दिया ,,आपका हार्दिक आभार और आशा है ,यूँ ही हम छोटों को आशीष देते रहेंगे |
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर आपका स्नेह और आशीर्वाद पाकर अभिभूत हो जाता हूँ. आप लोगो के मार्गदर्शन से ही रचनाकर्म को बल मिलता है. आपका ह्रदय से आभारी हूँ. नमन
At 3:38pm on December 22, 2014, vijay nikore said…
शुभकामनाओं के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय गोपाल नारायन जी।
आदरणीय यहाँ हम सभी एक दुसरे से ही सीखते हैं आपकी बातों का समाधान करने का प्रयास करुँगी ,न० (१ )---शैली और वैली में मात्राओं की गड़बड़ थी सिर्फ आपने छोटी ई की मात्रा लगाईं थी ...गेयता साधने के लिए ऐसा समझौता मान्य नहीं होता.
न० (२ ) अंग्रेजो ने किया वात-आवरण कसैला------ रोले के इस विषम चरण --अंग्रेजो ने किया --में किया =१२ जब की विषम चरण का अंत २१ अर्थात गुरु लघु से होता है जैसे की आपने अन्य पदों में ठीक किया है जैसे --कहते है गोपाल ==इसमें चरण का अंत पाल २१ गुरु लघु से ठीक हो रहा है
न० (३ ) प्रारंभ का शब्द व् अंतिम शब्द एक सा करके देखिये आप खुद फ़र्क महसूस करेंगे कुण्डलिया का सौन्दर्य दुगुना हो जाएगा ---इसके अपवाद तो मिलते ही रहते हैं छूट तो लेते ही रहते हैं वो अलग बात है ,नाम के अनुसार कुण्डलिया तभी सार्थक होती है जब सर्प का फन व् पूंछ मिली हो अर्थात दोनों शब्द एक से हों ,आदरणीय जो कुछ मेरा अल्प ज्ञान था वो आपसे साझा किया |शुरू में मुझसे आपसे भी ज्यादा गलतियाँ हुई हैं |
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ह्रदय से आभार आपने मेरी रचना को माह की श्रेष्ठ रचना चुने जाने पर अपनी प्रतिक्रिया से प्रोत्साहित किया इसी तरह आशीर्वाद की आकाक्षी हूँ आपकी प्रतिक्रिया मेरा प्रोत्साहन है सादर साभार
आदरणीय गीत समझाने के लिए सादर धन्यवाद!
आदरणीय एक सवाल और है ! क्या गीत में अन्तरे की पुरक पंक्ति जिसका तुकान्त टेक के तुकान्त के समान होता है! क्या हम उस पंक्ति को न लिख कर अन्तरे के अन्त में केवल टेक ही लगा सकते है या नहीं ! क्यूं कि मैने कुछ गीतो में ऐसा देखा है! पता नहीं वे गीत ही है या कोई अोर विधा ! क्रपया बताए सादर
आदरणीय निवेदन है मुझे गीत विधा के बारे में समझाने का कष्ट करें ! क्या गजल की तरह ही गीत भी किसी मान्य बहर पर लिखना आवश्यक है! या खुद की बनाई बहर पर भी गीत लिख सकते है!
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव's Comments
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आदरणीय डॉक्टर साहेब
आपके द्वारा रचित खंडकाव्य मेघदूत का कथानक पढ़ा .बड़ा साहसिक कदम उठाया है आपने .आपने मेरी जिज्ञासा बहुत बढ़ा दी है .पूरा मेघदूत पढ़ने के लिए मन लालायित हो उठा है . आशा करता हूँ की बहुत जल्दी आपका खंडकाव्य पढ़ने को मिलेगा .महाकवि कालिदास की रचना का हिंदी काव्यानुवाद कितना बड़ा कार्य है और इसके लिए कितनी हिम्मत चाहिए मैं समझ सकता हूँ .किन्तु आपने इस कार्य को पूर्ण करके सामान्य जनमानस को भी मेघदूत की जो सौगात भेंट की है उसके लिए हिंदी साहित्य सदैव आपका ऋणी रहेगा . आप ऐसे ही पुनीत कार्य करते रहें .हमारी शुभकामनाएं सदैव आपके साथ हैं .
स्वागत है आदरणीय !
नूतन वर्ष 2016 आपको सपरिवार मंगलमय हो। मैं प्रभु से आपकी हर मनोकामना पूर्ण करने की कामना करता हूँ।
सुशील सरना
वह अगले साल आएगा - इस वाक्य में कौन सा कारक है?
1) कर्म कारक
2) अपादान कारक
3) अधिकरण कारक
4) सम्बन्ध कारक
आदरणीय डा. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी कृतज्ञ हूँ सर !!
आ. गोपाल नारायन सर, ये घटना मेरे सामने की है(मेरे परम मित्र के साथ घटी हुई) इसीलिए मैंने इस पर लिखने का प्रयास किया है. एक प्रयास थी इस संवेदनशील मुद्दे पर लिखने की, काफ़ी कमियाँ रह गई हैं. सुधरा हुआ रूप निकट भविष्य में पुनः आप सभी श्रेष्ठ एवं गुणीजनों के समक्ष प्रस्तुत करूँगा. कहानी पर समय देकर मार्गदर्शन के लिए आपको कोटिशः धन्यवाद. आपके द्वारा इंगित किए गए बिन्दुओं पर काम करके यह कहानी पुनः पोस्ट करूँगा.
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यही है कविता का मर्म
नियम नहीं, धर्म नहीं
बस केवल कर्म'.....आदरणीय गोपाल भाईजी, बहुत बढ़िया, कविता कर्म प्रधान हो यह लक्ष्य होना चाहिए, सादर।
बहुत बहुत आभार! आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर! स्नेह बनाये रक्खे!
आ. डॉ गोपाल नारायण जी ,,,कविता के इस मंच पर ,,अपना मित्र बनाकर आपने मुझे पुरस्कार दिया ,,आपका हार्दिक आभार और आशा है ,यूँ ही हम छोटों को आशीष देते रहेंगे |
सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर आपका स्नेह और आशीर्वाद पाकर अभिभूत हो जाता हूँ. आप लोगो के मार्गदर्शन से ही रचनाकर्म को बल मिलता है. आपका ह्रदय से आभारी हूँ. नमन
शुभकामनाओं के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय गोपाल नारायन जी।
सदस्य कार्यकारिणीrajesh kumari said…
महनीया
आपसे सदा सीखता रहता हूँ i इसी जिज्ञासा में आपकी निम्न टिप्पणी पर भी अपनी शंका का निवारण चाहूँगा i
शैलि ,वैलि में गच्चा खा गए आदरणीय :))) और पकडे भी गए ...... स्वीकार है आदरणीया
अंग्रेजो ने किया वात-आवरण कसैला----रोले में विषम इसे कुछ और स्पष्ट करें महनीया
चरण का गुरु लघु से होना है आपका किया =लघु गुरु
कुण्डलिया का आरम्भ का शब्द और अंत का शब्द भी एक ही होना मेरे संज्ञान में अब यह बाध्यता अब
चाहिए समाप्त हो गयी है
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आदरणीय यहाँ हम सभी एक दुसरे से ही सीखते हैं आपकी बातों का समाधान करने का प्रयास करुँगी ,न० (१ )---शैली और वैली में मात्राओं की गड़बड़ थी सिर्फ आपने छोटी ई की मात्रा लगाईं थी ...गेयता साधने के लिए ऐसा समझौता मान्य नहीं होता.
न० (२ ) अंग्रेजो ने किया वात-आवरण कसैला------ रोले के इस विषम चरण --अंग्रेजो ने किया --में किया =१२ जब की विषम चरण का अंत २१ अर्थात गुरु लघु से होता है जैसे की आपने अन्य पदों में ठीक किया है जैसे --कहते है गोपाल ==इसमें चरण का अंत पाल २१ गुरु लघु से ठीक हो रहा है
न० (३ ) प्रारंभ का शब्द व् अंतिम शब्द एक सा करके देखिये आप खुद फ़र्क महसूस करेंगे कुण्डलिया का सौन्दर्य दुगुना हो जाएगा ---इसके अपवाद तो मिलते ही रहते हैं छूट तो लेते ही रहते हैं वो अलग बात है ,नाम के अनुसार कुण्डलिया तभी सार्थक होती है जब सर्प का फन व् पूंछ मिली हो अर्थात दोनों शब्द एक से हों ,आदरणीय जो कुछ मेरा अल्प ज्ञान था वो आपसे साझा किया |शुरू में मुझसे आपसे भी ज्यादा गलतियाँ हुई हैं |
जन्म दिन पर आपकी शुभ कामनाएं पाकर मै धन्य हुआ |आपका हार्दिक आभार आद डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी | प्रभु आपसी सद्भाव बनाए रखे | सादर
आदरणीय एक सवाल और है ! क्या गीत में अन्तरे की पुरक पंक्ति जिसका तुकान्त टेक के तुकान्त के समान होता है! क्या हम उस पंक्ति को न लिख कर अन्तरे के अन्त में केवल टेक ही लगा सकते है या नहीं ! क्यूं कि मैने कुछ गीतो में ऐसा देखा है! पता नहीं वे गीत ही है या कोई अोर विधा ! क्रपया बताए सादर
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आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
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