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प्रकृति का संगीत है पर्यावरण ,
वनसम्पदा का प्रतीक पर्यावरण |
कोयल की कूक,पंछी की चहक,
फूलो की महक,झरनों की छलक ,
रंगीं धरती का गीत है पर्यावरण |
प्रदूष्ण ने फैलाया है जाल ,
लिपटी धरा उसमें है आज
बचाना है धरती का आवरण |
कटे पेड़ों से बिगड़ा आकार ,
चहुँ ओर फैला है हाहाकार ,
टूटें तार ,सुना है पर्यावरण |
आओ मिल लगायें नये पेड़ पौधे ,
सूनी धरा में खुशियाँ नई बो दे ,
नये स्वर बनाएं रंगीं पर्यावरण |

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Comment

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 13, 2012 at 10:53pm

प्रदूष्ण ने फैलाया है जाल ,
लिपटी धरा उसमें है आज 
बचाना है धरती का आवरण |
कटे पेड़ों से बिगड़ा आकार ,
चहुँ ओर फैला है हाहाकार ,

सुन्दर  सन्देश देती रचना अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए इस का ध्यान रखना बहुत जरुरी है .. ...भ्रमर ५ 

Comment by Rekha Joshi on May 13, 2012 at 4:43pm

भावेश जी ,रचना सराहने पर आपका बहुत बहुत धन्यवाद | thanks

Comment by Rekha Joshi on May 13, 2012 at 4:41pm

Nilansh ji ,thanks ,hope to receive comments in future also ,

Comment by Rekha Joshi on May 13, 2012 at 4:31pm

Aashish ji ,thanks for the nice comment.

Comment by Rekha Joshi on May 13, 2012 at 4:29pm

राजेश जी ,उत्साहवर्धक कमेन्ट के लिए धन्यवाद  thanks 

Comment by Rekha Joshi on May 13, 2012 at 4:26pm

thanks 

Comment by Rekha Joshi on May 13, 2012 at 4:26pm

बागी जी आपको रचना पसंद आई ,धन्यवाद 

Comment by Rekha Joshi on May 13, 2012 at 3:23pm

आदरनीय प्रदीप जी ,आपके कमेंट्स हमेशा मेरा उत्साह  बढाते है धन्यवाद 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 13, 2012 at 3:01pm
आदरणीय रेखा जी. सादर 
करे या न करे सरकार 
पर्यवरण रक्षा बने संस्कार 
आओ सब मिलकर ज्योत  जगाएं
हर घर कम से कम पांच पौध लगायें 
बधाई.   

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 13, 2012 at 12:50pm

आदरणीया रेखा जोशी जी, पर्यावरण पर अच्छी रचना प्रस्तुत की है, बधाई आपको |

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