For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक लघु साहित्यिक - संस्मरण --- डॉ o विजय शंकर

साहित्य और हम , साहित्य और स्वयं हम। सोंचें तो कितने जुड़े हैं साहित्य से हम। कितना प्रभाव डालता है साहित्य हम पर , कितना हम दे पाते हैं उसे , वापस।
कथा-कहानी साहित्य की मेरी जीवन यात्रा " पराग " से शुरू हई थी , पचास के दशक के आख़िरी कुछ वर्षों से , नई मुद्रा का प्रचलन 01 अप्रेल 1957 से शुरू हुआ था।नैये पैसे , न जाने कैसे मुझे आज भी याद है , पराग काफी समय तक चालीस पैसे ( नैये पैसे ) में आती थी लेकिन काफी बड़ी और सुन्दर पत्रिका होती थी , मुझे यत्र - तत्र कुछ-कुछ याद है , शायद सबसे अधिक छोटू - लम्बू , फिर कुछ और बड़ा हुआ तो चन्दा मामा , जिसकी कहानियां कुछ बड़े बच्चों के लिए होती थीं , बड़ी और अधिक प्रेरणादायक। मैं अभी भी महसूस करता हूँ कि अपने जीवन में बहुत प्रेरक बातें मैंने इन्हीं दो ( बाल ) पत्रिकाओं से सीखीं। यह भी जाना कि समाज की कुछ बुराईयाँ पुरानी हैं ,और बस , समय के साथ चलती हैं , बस चलती रहतीं हैं , क्योंकि हम उन्हें चलाते रहते हैं।

बचपन कब बीता और कब हम " धर्मयुग " और " साप्ताहिक हिन्दुस्तान " पढ़ने लगे , आज बता पाना मुश्किल है , पर यह पत्रिकाएं हमारे घर पर नियमित आतीं थी क्योंकि हमारी माता जी को स्वयं पढ़ने का बहुत शौक था , साथ में " कादम्बनी " " नवनीत " भी आया करती थी। " इलेस्ट्रेटेड वीकली " और " फिल्मफेयर "अंग्रेजी में। वीकली के संपादक खुशवंत सिंह जी के चित्र मेरे मानस - पटल पर आज भी तभी से अंकित हैं। विख्यात व्यंगकार हरी शंकर परसाई जी का पुलिस पर लिखा मशहूर व्यंग का अंग्रेजी रूपांतरण में " Inspector Matadeen on moon " मैंने इलेस्ट्रेटेड वीकली में ही पढ़ा था , उसका काफी अंश मुझे आज भी याद है।

धर्मयुग का अपना ही एक स्थान था , उसमें " हाशिये पर " शीर्षक से एक स्तम्भ हुआ करता था जिसमें लोग क्षणिकाएँ लिखा करते , उसी में से एक मुझे कभी नहीं भूली ,
" लोग चाँद पर
चले गए ,
हमारा रास्ता
बिल्ली काट गई। "
इसी तरह " पिता जी , पिता जी , पिता जी " , एक बहुत लम्बी कविता, वह भी लोकप्रिय हुयी थी ,
" सुरसतिया की लाश मिली है नदी किनारे देवर जी " जैसी युग को समर्पित कविता , जिसने भी पढ़ी हो , कौन भूल सकता है। परदेश को नौकरी पर गए अपने देवर को गाँव से लिखी किसी भौजाई की एक चिठ्ठी , जिसमें वह घर - गाँव का सारा हाल लिखती है। उसकी इस एक पंक्ति ने जैसे सांस्कृतिक / आपराधिक / लाचारी / विवशता और उपेक्षित / तिरस्कृत समाज का चित्र उकेर कर रख दिया था।

धर्मयुग में ही पढ़ी एक कहानी की एक पंक्ति , " यदि आपके वस्त्र स्वच्छ , सफ़ेद , साफ़ - सुथरे हैं तो लोगों का एक वर्ग आप पर तरह तरह के कीचड़ उछालता रहेगा , और अगर आपके वस्त्र कीचड़ में सने हैं तो एक वर्ग हमेशा , लगातार , आपके वस्त्रों को धोता रहेगा , वस्त्रों के उज्जवल होने का ढिंढोरा पीटता रहेगा।"

पराग से सारिका तक की छोटी सी कथा - साहित्य की यात्रा में बहुत कुछ है जो मानस-पटल पर अंकित हो गया है , पर बहुत कुछ है जो सोचने को भी विवश करता है। दुनियाँ चाहे जितनी भी बदल गयी हो , नेट - आई टी का कितना भी विकास हो गया हो , कहीं तो लगता है कि कहीं कुछ भी तो नहीं बदला है , सब कुछ तो वैसा ही है ,
प्रगति के किसी भी प्रयाण के पहले बिल्ली हमारा रास्ता काट देती है . पिता जी के पुत्रों की भरमार है , वही नियामक हैं , उन्हीं को नियामक माना जा रहा है , मानना है। परसाई की पुलिस वैसी ही है , सुरसतिया की लाश कहीं भी कभी भी मिल जाती है , .... और कीचड़ से सने वस्त्रों में लिपटों को एक हुजूम उज्जवल वस्त्रधारी घोषित कर रहा है , उज्जवल वस्त्रधारी डरे-सहमें से रहते हैं कि कब कौन किस तरफ से कीचड़ न उछाल दे। सब कुछ वैसा ही है।

कितना साहित्य लिखा जाता है , लिखा जा चुका है , किसे प्रभावित कर रहा है ? सब कुछ तो वैसे ही है , लगभग एक अर्द्ध - शताब्दी तो मैंने देख ही ली।
प्रश्न उठता है कि क्या साहित्य समाज से इस कदर दूर है , दोनों में कोई मेल-मिलाप नहीं है , समाज साहित्य से कोसों दूर है , और साहित्य भी समाज से बहुत दूर है। न उस तक पहुंच पा रहा है और न उस तक अपनी बात पहुंचा पा रहा है। केवल कुछ तथाकथित सभ्रांतों तक बंध कर रह गया है।
अब यह मत कहियेगा कि सब लोग कहाँ पढ़ते हैं। हर समाज में , हर युग में , पठित वर्ग बहुत सीमित होता है , पर होता है और जबरदस्त होता है , साहित्यिक-चेतना को वही वर्ग जन- जन तक पहुंचा भी देता है , समाज को साहित्य से जोड़ भी देता है , बशर्ते उसमें ऐसी इच्छा हो , लगन हो , इच्छा - शक्ति हो। दुनियाँ में ऐसे भी उदाहरण हैं जहां कुछ शब्दों ने तहलका मचा दिया , जीवन का स्वरूप , सोचने के तरीके बदल दिए। कोस्टा रीका में जीवन - दर्शन , जीवन शैली बन चुका , शब्द- युग्म "पुरा विदा " कुछ नहीं , मेक्सिको की एक फिल्म का एक डायलॉग है , उसी को लोगों ने जीवन का आदर्श बना लिया है। " स्वंत्रता , समानता , भातृत्व " इन तीन शब्दों ने दुनियाँ को पुरातन युग से , पुरातन सोच से ,पुरातन शासन -पद्दति से , पुरातन जीवन-शैली से निकाल कर एक नवीन युग में पहुंचा दिया। पर जोड़िये तो समाज को इस सुन्दर साहित्य से।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 881

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 15, 2015 at 7:42pm
संस्मरण मन को छू गया.. साहित्य और समाज के बीच बहुत बड़ा गैप है...इसका सबसे मूल कारन 90%साहित्यकारों का बस नाम क लिए लिखना है...सामाजिक सरोकार से वास्ता न रखना है और जो लिखते है उससे स्वयं
के ही आचरण में न लाना है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
11 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
11 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
11 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
11 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
12 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
12 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"वैशाख अप्रैल में आता है उसके बाद ज्येष्ठ या जेठ का महीना जो और भी गर्म होता है  पहले …"
12 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"सहृदय शुक्रिया आ ग़ज़ल और बेहतर करने में योगदान देने के लिए आ कुछ सुधार किये हैं गौर फ़रमाएं- मेरी…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई जयनित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई संजय जी, अभिवादन एवं हार्दिक धन्यवाद।"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई दयाराम जी, हार्दिक धन्यवाद।"
12 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service