" अरे यार ये टीo वीo चैनेल वाले भी बस क्या क्या दिखाते रहते हैं , हफ़्तों - महीनों। कभी किसी बाबा को , कभी किसी स्वामिनी को या फिर पारिवारिक रंजिशें।
बस यही देश की न्यूज़ रह गई है ? "
" उनकीं नज़र में यही न्यूज़ है , वो बचपन में पढ़े थे न , कुत्ता आदमी को काटे तो न्यूज़ नहीं होती है , हाँ , आदमी कुत्ते को काटे तो न्यूज़ होती है , किसी बड़े खबरची ने कहा है।"
" पता नहीं , यार , हम तो कभी कुत्ते को काटे नहीं , वो हमारे सामने काट के दिखाता तो पता चलता , उसे भी और हमें भी। "
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय विजय शंकर जी, बहुत ही सुंदर लघुकथा के लिए बधाई कबूल करें
//कुत्ता आदमी को काटे तो न्यूज़ नहीं होती है , हाँ , आदमी कुत्ते को काटे तो न्यूज़ होती है // हा हा हा हा ... बहुत खूब आदरणीय डा. विजय शंकर जी , क्या बात कही है आपने ! बात ही बात में लघुकथा बनने के तथ्यों का भी खुलासा कर गये आप । बधाई इस सुंदरतम लघुकथा के लिए ।
आदरणीय विजय शंकर सर, बहुत ही गहन वैचारिक चिंतन का परिणाम है ये लघुकथा...... इस प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई. सादर
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