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न्यूज़ (लघुकथा) - डॉo विजय शंकर

" अरे यार ये टीo वीo चैनेल वाले भी बस क्या क्या दिखाते रहते हैं , हफ़्तों - महीनों। कभी किसी बाबा को , कभी किसी स्वामिनी को या फिर पारिवारिक रंजिशें।
बस यही देश की न्यूज़ रह गई है ? "
" उनकीं नज़र में यही न्यूज़ है , वो बचपन में पढ़े थे न , कुत्ता आदमी को काटे तो न्यूज़ नहीं होती है , हाँ , आदमी कुत्ते को काटे तो न्यूज़ होती है , किसी बड़े खबरची ने कहा है।"
" पता नहीं , यार , हम तो कभी कुत्ते को काटे नहीं , वो हमारे सामने काट के दिखाता तो पता चलता , उसे भी और हमें भी। "

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on September 4, 2015 at 7:34pm
आदरणीय ओम प्रकाश क्षत्रिय जी , रचना को स्वीकार करने के लिए आपका ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर .
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 4, 2015 at 7:32pm
प्रिय मिथिलेश जी , रचना की स्वीकृति के लिए आपका ह्रदय से बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद , सादर .
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 4, 2015 at 7:30pm
आदरणीय सुशील सरना जी , रचना की स्वीकृति के लिए आपका ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर .
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 4, 2015 at 7:29pm
आदरणीय तेजवीर सिंह जी , रचना की स्वीकृति के लिए आपका बहुत बहुत आभार एवं धन्यवाद , सादर .
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 4, 2015 at 7:28pm
आदरणीय सुश्री प्रतिभा पाण्डेय जी , रचना की स्वीकृति के लिए आपका आभार एवं धन्यवाद , सादर .
Comment by मोहन बेगोवाल on September 4, 2015 at 5:57pm

आदरणीय विजय शंकर जी, बहुत ही सुंदर लघुकथा के लिए बधाई कबूल करें 

Comment by kanta roy on September 3, 2015 at 10:44pm

//कुत्ता आदमी को काटे तो न्यूज़ नहीं होती है , हाँ , आदमी कुत्ते को काटे तो न्यूज़ होती है //      हा हा हा हा ... बहुत खूब आदरणीय डा. विजय शंकर जी , क्या बात कही है आपने ! बात ही बात में लघुकथा बनने के तथ्यों का भी खुलासा कर गये आप । बधाई इस सुंदरतम लघुकथा के लिए ।

Comment by Omprakash Kshatriya on September 3, 2015 at 9:20pm
आदरणीय विजय शंकर जी news ऐसे ही बनती है । बधाई ।
Comment by Omprakash Kshatriya on September 3, 2015 at 9:16pm
आदरणीय विजय शंकर news ऐसे ही बनती है । बधाई ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 3, 2015 at 6:28pm

आदरणीय विजय शंकर सर, बहुत ही गहन वैचारिक चिंतन का परिणाम है ये लघुकथा......  इस प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई. सादर 

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