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तुम्हारा मौन जो कह गया -- डॉo विजय शंकर

दिल में जो था मेरे ,
मैंने कहा , मैं कह गया ॥
सब कुछ कह गया ॥
सुन लिया तुमने ,
और कुछ ,
कुछ भी नहीं कहा ॥
शांत , सब सुन लिया ,
मौन एक , बस , धर लिया।
ये मौन तुम्हारा ,
दीर्घ मौन तुम्हारा ,
कितना कुछ कह गया ,
कितना गहरा उतर गया ||
इसी में डूबता - उतराता रहूंगा
मैं , अब उम्र भर ,
और समझता रहूंगा ,
विवशता तुम्हारी ,
सब सुनना , सुन लेना ,
कुछ न कहना , कुछ भी न कहना ,
एक बोझ , लिए रहना ,
उस बोझ को सहते रहना ||
भारी मजबूरी तुम्हारी ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 531

Comment

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Comment by somesh kumar on December 17, 2014 at 9:11pm

सुंदर रचना ,मौन कितना कुछ कह गया जो लाख शब्दों में भी ब्यान ना हुआ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 17, 2014 at 7:24pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी बहुत सुंदर रचना बहुत बहुत बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

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