दूर तक फैला हुआ है, राज सम्यक शान्ति ।
हूर जीवन - धौंकनी है, गूँजता वन शान्ति ।।
नीर सूखा नालियों का, आँख ज्यौं पानी नही ।
लाज जैसे मर गयी हो, आजमा जीवन कहीं ।।
एक चुप पसरा हुआ है, पर्वतों से घाट तक ।
देखिय़े तट सखिविहीना, कृष्ण-राधा ठाठ तक ।।
ज़िन्दगी यदि मर रही है जग, मारता मन आज मद ।
आदमी रहता यहाँ खुश, मन प्रकृति वन मौज- मद ।।
गाँव की शालीनता मिल जायगी क्या शहर में ।
हैं खुशी छोटी मगर सुख, मुश्किलों मन शहर में ।।
सो रहा कोई नगर जब, दोपहर की छाँव में ।
शहर देखा हम सभी ने, धूप के इस गाँव में ।।
घाटियाँ दुर्गम यहाँ पर्वत भरे हैं झुरमटों ।
कल्पना में सुन रहा कवि, कूक- कोयल झुरमटों ।।
मानता हूँ मैं रहा कवि, श्रेणियों में आज तक ।
कवि सदा गम्भीर चेतन वादियों में आज तक । ।
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