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2122 2122 212
जब सँभलना आदमी को आ रहा
घुट्टियों का खेल खेला जा रहा।1

पाँव भारी हो गए हैं शब्द के
अर्थ क्या से क्या निकाला जा रहा।2

क्या कुलाँचे भर सकेगा अब शशक
घाव घुटनों में मुआ चिपका रहा।3

थम गई थीं आँधियाँ दुर्द्वंद्व की
कौन जहरीली हवा भड़का रहा?4

चैन से नीरो बजाता बंसियाँ
धुन वही हर शख्स फिर-फिर गा रहा।5
"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Mohammed Arif on August 8, 2018 at 12:45pm

आदरणीय मनन कुमार जी आदाब,

                         ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

Comment by Manan Kumar singh on August 7, 2018 at 8:55am

बहुत बहुत आभार आदरणीय रवि शुक्ला जी।आपके स्नेह से अभिभूत हूँ,सादर।

Comment by Ravi Shukla on August 6, 2018 at 11:38pm

आदरणाीय मनन जी गजल अच्छी हुई है बघाई 

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