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ग़ज़ल - करते हैं चोरी पर चोरी क्या कहने

फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन फा
22 22 22 22 22 2
करते हो चोरी पर चोरी क्या कहने।
ऊपर से ये सीनाजोरी क्या कहनै।

बातें तो करते हो बढ़चढ़कर लेकिन,
बातें हैं कोरी की कोरी क्या कहने।

लाँघ न पाई अपने घर की जो देहरी,
दौड़ रही वो गाँव की गोरी क्या कहने।

कार्टून फिल्में क्या आईं टीवी में,
बच्चे भूले माँ की लोरी क्या कहने।

कल जो साधू सन्त दिखाई देते थे,
वे सब निकले आज अघोरी क्या कहने।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 31, 2017 at 11:28am

आदरणीय राम अवध जी ग़ज़ल में बहुत सुन्दर तंज है | मुबारकबाद स्वीकार करें | नमन 

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on October 31, 2017 at 5:13am
आदरणीय आरिफ सर बहुत बहुत धन्यवाद ग़ज़ल सराहना के लिये।
Comment by Mohammed Arif on October 30, 2017 at 10:24pm
आदरणीय राम अवध जी आदाब, बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । हर शे'र माक़ूल कहा आपने । मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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