For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"सारा शहर दिवाली के जश्न में डूबा है और तुम किस सोच में डूबे हो" दिवाली की पूजा ख़त्म होने के बाद राहुल से मुलाकात करने गए उसके मित्र रोहित ने उसकी ओर मुखातिब होते हुए पूंछा।
" कुछ नहीं! दिवाली मनाते हुए तो सालों गुजर गए पर आज न जाने क्यों दिवाली मुझे मेरी पहली मुहब्बत सी लगी"
"वो कैसे"
" अरे!पहली बार मुहब्बत में आँखों को जो कुछ भी भाया था उसके खतरे को भी नाक ने सूँघा था और फिर सारा दर्द दिल को ही हुआ था। और आज आतिशबाजी देखकर नाक खतरे से आगाह कर रही है पर सारा दर्द सारी तकलीफ दिल को ही झेलनी है।" रोहित के कैसे का जवाब देते हुए राहुल ने कहा।
"यह तो वाकई चिंता का सबब है राहुल"
" बिल्कुल है, और जब मैं भागना चाह रहा हूँ तो ऐसा लग रहा है जैसे हवाएँ एक पुरानी फ़िल्म का गीत ....वादियां मेरा दामन रास्ते मेरी बांहे जाओ मेरे सिवा तुम कहाँ जाओगे ...मेरे साथ ठिठोली करके गा रही हो और मैं खुद को टाइटेनिक फ़िल्म में डूबते टाइटेनिक की डूब चुकी मंजिल से ऊपर की मंजिल की तरफ भागता हुआ महसूस कर रहा हूँ।"
रोहित को अपने बिचारो से सहमत होता देख राहुल नेअपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा
" लेकिन राहुल अब क्या होगा.....इससे कैसे बचा जाए" रोहित की चिंता बढ़ रही थी।
" बचा जाये! नहीं रोहित अब टाइटेनिक फ़िल्म का वो दृश्य ध्यान में लाओ जिसमे डूबते जहाज की ऊपर की मंजिल पर बैठ कोई शख्स जहाज के डूबने से बेपरवाह वॉयलिन बजाने में व्यस्त था। तुम भी आओ और इस जहरीली हवा में साँस लेते हुए इस घड़ी सोचने से ज्यादा किसी भी तरह जी लेने में विश्वास करो।एक तरफ दाने दाने अन्न और साफ़ पानी को तरसते बाल वृद्ध नर -नारी और दूसरी तरफ अरबों रूपये में आग लगाकर मौत परोसते मौत के इन सौदागरों के कृत्य...अब इन्हें ही तुम अपनी नियति मान लो" एक दार्शनिक की तरह मुखर होते राहुल बोले जा रहा था
" सरकार इस पर कोई सख्त कदम क्यों नहीं उठाती है। धर्म और परंपराएं जीवन के लिए है जब जीवन ही नहीं रहेगा तो क्या करेगा धर्म क्या करेंगी परंपराएं। " रोहित आक्रामक रुख के साथ कह रहा था।
" कौन सी सरकार, कौन से सख्त कदम...आखों पे पट्टी बांधे न्याय की देवी ने न्याय की बात करते हुए रोक लगाई तो थी पटाखों पर.....कितना हंगामा किया था ठेकेदारों ने...न्याय की देवी की आखो से पट्टी हटाकर न्याय के नाम पर हुए क्रियान्वन को देखने तक की हिम्मत नहीं हुयी"राहुल के स्वर में आक्रोश झलक रहा था।
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 906

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 20, 2017 at 1:18pm
बहुत बढ़िया विचारोत्तेजक रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा साहब। वाक्य संरचनाओं को थोड़ा छोटा/सरल किया जा सकता है, रुचिकर प्रवाह के लिए। सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"वाह वाह  आदरणीय, आपकी प्रस्तुति पर पुन: आता हूँ।  करूँगा मैं चर्चा सबुर आप…"
21 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"वाह वाह  आदरणीय, आपकी इस प्रस्तुति पर पुन: आऊँगा।  शुभातिशुभ"
30 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया

पलभर में धनवान हों, लगी हुई यह दौड़ ।युवा मकड़ के जाल में, घुसें समझ कर सौड़ ।घुसें समझ कर सौड़ ,…See More
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service