२१२२ १२१२ २२
बात खाली मकान क्या करता
दास्ताँ वो बयान क्या करता
पंख कमजोर हो गये मेरे
लेके अब आसमान क्या करता
उसकी सीरत ने छीन ली सूरत
उसपे सिंघारदान क्या करता
रूठ जाते मेरे सभी अपने
चढ़के ऊँचे मचान क्या करता
नींव में झूठ की लगी दीमक
लेके ऐसी दुकान क्या करता
बाढ़ में ढह गये महल कितने
मेरा कच्चा मकान क्या करता
मौन सब थे निजाम की सुनकर
मैं चलाकर जुबान क्या करता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
प्रिय कल्पना भट्ट जी ,आपका तहे दिल से शुक्रिया |
आद० नरेंद्र कुमार सिंह जी ,आपका बहुत बहुत शुक्रिया .
आद० बृजेश कुमार 'ब्रज जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया |
मोहतरम जनाब खुर्शीद खैराडी जी ,आपका तहे दिल से शुक्रिया |
आद० सुरेन्द्र नाथ जी ,आपका बहुत बहुत शुक्रिया |
आद० महेंद्र कुमार जी ,आपका तहे दिल से शुक्रिया .
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