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बदमाश सखी की चंचल बातें
करती मस्ती
कभी तो कर देती है दूर
खींच एक लकीर

क्या खोया पाया
मन की वेदना को
अब रास आती है
खामोशियाँ ....

हँसते रहना है
दूर हो जाये हर मुश्किल
सखी की ...

न दो अब कोई आवाज़
थके कदमो से चलना है
अभी बाक़ी है कोई राह
पुकारती हुई सी ...

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 23, 2017 at 12:42pm
धन्यवाद आदरणीय Mohammed Arif ji
Comment by Mohammed Arif on February 22, 2017 at 5:29pm
आदरणीया कल्पना भट्ट जी आदाब, बहुत सुंदर रचना । बधाई स्वीकार करें ।

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