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ग़ज़ल - क्या आपके दिल में है ?बता क्यों नहीं देते?

ग़ज़ल
क्या आपके दिल में है,बता क्यों नहीं देते ?
नजरों से मेरी पर्दा उठा क्यों नहीं देते ?

ये किसलिये अहसान के नीचे है दबाया?
मुझको मेरी कमियों की सज़ा क्यों नहीं देते ?

कुछ गलतियाँ करवाती हैं मज़बूरियाँ सबसे
तुम तो बड़े हो गलती भुला क्यों नहीं देते?

हालाँकि सराबोर महब्बत से हूँ लेकिन
मौसम ये बहारों के मज़ा क्यों नहीं देते?

ये कौन ज़ुदा शख्स मेरे पीछे पड़ा है
सब पूछते हैं मुझसे,बता क्यों नहीं देते ?

जो शख्स यहाँ आहे महब्बत की वजह है
उस शख्स को दुनिया से मिला क्यों नहीं देते ?

ये दर्द महब्बत का महब्बत के लिए है
इस दर्द को और -और बढ़ा क्यों नहीं देते ?

क्यों सामने अनजान के रोया है "सुजान"आज
सीने में हुआ जख़्म दिखा क्यों नहीं देते ?

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 20, 2016 at 12:50pm
आदरणीय सूबे सिंह जी सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई ।
Comment by सूबे सिंह सुजान on September 20, 2016 at 12:11pm
आभार श्रीमान जी

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