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"एक्सटिंक्ट" होने के कगार पर

पहले वह रोज आती थी
कभी बरामदे के मुंडेर पर बैठती
कभी खिड़की पर
और कभी-कभी तो
हद ही हो जाती जब वो
कमरे के अन्दर तक आ जाती ।

रोज सबेरे
जब उसकी आवाज सुनते
तब लगता
कि सुबह हो गई है
तब शुरू हो जाता
हमारा रोजनामचा ।

दिन ऐसे ही
रोज गुजरते रहे
वह रोज आती रही
हम रोज उसे देखते रहे
फिर एक दिन अचानक
लगा कुछ " मिसिंग" है ।

फिर अखबार में पढ़ा
गौरैया "एक्सटिंक्ट" होने के कगार पर है
एक सदमा जैसा लगा
ऐसे कैसे हो सकता है
पर ऐसा ही हुआ है
अब वो नहीं आती ।

उसका इंतजार रहता है, रोज
सुबह से शाम तक
शायद आज दिख जाए
पर नहीं, वो कहाँ दिखने वाली
शायद अखबार की खबर सच है
गौरैया "एक्सटिंक्ट" होने के कगार पर है ।

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 24, 2010 at 10:28pm

बहुत ही सुंदर काव्य की प्रस्तुति है नीलम दीदी, गौरैया जो हम सब के आँगन में फुदकती रहती थी आज पता नहीं किसकी नजर लग गई की वो विलुप्त होती जा रही है, एक और पक्षी जिनका पारिस्थितिकी मे बहुत योगदान था आज विलुप्त हो गया है , जी हाँ मैं गिद्ध महाराज की ही बात कर रहा हू जिनके वजह से हमारा वातावरण साफ़ सुथरा रहता था,
दीदी आप की नज़र हर तरफ रहता है यह आपकी कविताओ में दिखता है, बहुत बहुत धन्यवाद इस खुबसूरत कृति हेतु,
Comment by Rash Bihari Ravi on June 24, 2010 at 6:06pm
दिन ऐसे ही
रोज गुजरते रहे
वह रोज आती रही
हम रोज उसे देखते रहे
फिर एक दिन अचानक
लगा कुछ " मिसिंग" है ।

manmohak soch
Comment by baban pandey on June 24, 2010 at 4:19pm
हम रोज उसे देखते रहे
फिर एक दिन अचानक
लगा कुछ " मिसिंग" है ।......distortion of nature can convert many spices into extinct class.....thanks..

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