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ढूंढती मुस्कान मेरी

ढूंढती  मुस्कान मेरी  एक निशंक सा बहाना 
आने का बहाना , जाने का  बहाना 
मेरे बुलाये से नहीं आती तो नहीं ही आती है  
बावरी है पगली है  समझ ही नहीं पाती है 
कि कितनी जरूरत है मेरे चेहरे को 
अकारण  उसके चस्पां होने की 
वो नहीं समझती कि
बिना उसके 
मेरे चहरे पर सच्चा ब्यान लिखा होता  है 
निरंतर एक  युद्ध  घमासान लिखा होता है 
इसके आने से पर्दा महीन सही पर आ जाता है 
स्वंय को भुलावे पे यकीन नहीं ,पर आ जाता है 
बावरी है पगली है  समझ ही नहीं पाती है 
कि कितनी जरूरत है मेरे चेहरे को 
अकारण  उसके चस्पां होने की 
मुझे इसके नखरे समझ नहीं आते हैं 
बाज़ार में इतनी मंदी है 
पर इसके भाव हैं कि चढ़ते ही जाते हैं 
पर इसको भी क्या दोष दूं 
जानती हूँ  कि पकड़ लेती है वो 
 मेरा सफेद झूठ 
 मेरे अभिनय का  बेदम प्रयास 
पढ़ लेती है मेरी नाकामयाबी 
निरंतर स्वंय से  युद्धरत बेताबी 
तो  इसको भी क्या दोष दूं 
मैं उसको बुला भी लूं 
वो आ भी जाए 
शहीद के सूने घर में स्वर्ण मैडल जैसी 
तो भी पूर्व स्थिति बहाल तो नहीं हो पाती है 
सामना हो भी जाए तो 
मैं भी उससे नज़रें नहीं मिला पाती 
वो भी सहज कहाँ हो पाती है 
वो भी खिसियाती  है 
शायद घबराती है 
इसको भी क्या दोष दिया जाए 
रोज़ ही किसी पंचायत के फैसले की खबर आ जाती है 
 ख़बर से बहते खून से ये मासूम  बिखर- बिखर जाती है  
 फंदे से  झूलती मासूम मुस्कान  से सिहर- सिहर जाती है 
मैं मुस्कान को ढूंढती फिरती हूँ  वो है कि लगातार टूटती जाती है 
मैं मुस्कान को ढूंढती फिरती हूँ  वो है कि लगातार रूठती  जाती है 
दूं मैं उसे कैसे कोई ठौर ,दूं  मैं उसे कैसे कोई ठिकाना 
ढूंढती  मुस्कान मेरी  एक ही  बहाना  निशंक सा बहाना , आने का बहाना .............."मौलिक व अप्रकाशित".

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Comment by amita tiwari on May 25, 2016 at 8:46pm

कांता जी 

आप तक मेरी उद्वेलना पहुँची .बस लिखना  सार्थक हो गया .

यहाँ के प्रमुख अखबार के प्रथम पृष्ठ पर  भारत की एक पंचायत द्वारा एक मासूम नाबालिग  बच्ची पर एक अमानवीय सजा के बारे में पढ़ा .

यकीन  ही नहीं आता ये व्ही धरती है जहाँ  गाय तक के माता का दर्जा मिलने न मिलने पर तूफ़ान आ जाते हैं और  दूसरी तरफ  पूरी पंचायत  मूर्छा में सोती रहती है और मासूम बच्चों पर ज़ुल्म हो  जाते हैं?

कहाँ खो गया  वो मेरा देश जहाँ  बच्चों को भगवान् का रूप समझा जाता रहा है 

Comment by kanta roy on May 25, 2016 at 8:48am
ख़बर से बहते खून से ये मासूम  बिखर- बिखर जाती है  
 फंदे से  झूलती मासूम मुस्कान  से सिहर- सिहर जाती है ---- उद्वेलित  मन  से  निकली अप्रितम रचना  है  ये आपकी  आदरणीया  अमिता  जी ,बधाई  स्वीकार  कीजिएगा  

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