For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कैनवास ...

मुझे बहुत खुशी हुई थी
जब हर शख़्श
तुम्हें सलाम कर रहा था
तुम्हारे हर रंग की कद्र हो रही थी
तुम वाहवाही के नशे में गुम थे //


भीड़ में तन्हा
मैं तुम्हारे चहरे को निहार रही थी

इतने चहरे लिए
न जाने लोग कैसे जी लेते हैं
खुद को ज़िंदा रखने के लिए
न जाने
कितनों की खुशियाँ पी लेते हैं //


तुम कैसे पुरुष हो
औरत चाहते हो पर
उसे समझ नहीं पाते
उसके अहसासों से खिलवाड़ करते हो
न जाने कौन से चहरे से
उसके ख्वाब को फरेब देते हो
वो पानी की तरह साफ़ होती है
हर शीशे के साथ होती है
उसके हर पल में तुम जीते हो
वो तुम्हारे पल के लिए मर जाती है
तुम हर पल जीत जाते हो
वो हर पल हार जाती है//

आज दुनियावी नज़रों में
मैं एक महान कलाकार की प्रेरणा हूँ
वो प्रेरणा जिसे तुमने कभी
नज़र भर के भी नहीं देखा
बस रहा तो जिस्म भर का साथ रहा
रात भी स्याह रही
सहर भी ख़फा रही
मुझे चाहे तुमने कभी
इतनी शिद्दत से नहीं चाहा
जितनी शिद्दत से तुमने मुझे
अपनी तूलिका से
कैनवास पर जीवन दिया //


आज ये कैनवास बिक जाएगा
और इसके साथ ही बिक जाएगी
कैनवास पर तुम्हारी तूलिका से
नारी की अन्तर्दुविधा को प्रतिबिंबित करती
तुम्हारी ये प्रेरणा भी//

कल फिर तुम
एक नए चहरे के साथ आओगे
अपना पुरुषार्थ दिखाओगे
मैं बेबस हो जाऊँगी
फिर तूलिका से छली जाऊँगी
एक नयी प्रेरणा बन कर 

मैं कैनवास के मौन बिम्ब को जीती
फिर बिक जाऊँगी

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 632

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on March 14, 2016 at 1:05pm

आदरणीय   narendrasinh chauhan    जी रचना को अपने स्नेहिल शब्दों से मान देने का हार्दिक अाभार। 

Comment by narendrasinh chauhan on March 14, 2016 at 10:05am

खूब सुन्दर रचना

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . .तकदीर
"आदरणीय अच्छे सार्थक दोहे हुए हैं , हार्दिक बधाई  आख़िरी दोहे की मात्रा फिर से गिन लीजिये …"
3 hours ago
सालिक गणवीर shared Admin's page on Facebook
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर   होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर । उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service