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गजल
*****
चैन आना मुश्किल-सा लगा है
आज रिश्ता बोझिल-सा लगा है।
पैठ करतीं बातें तीर बनकर
अंग हर अपना दिल-सा लगा है।
दर्द अपना रख लो गाँठ कर अब
तंग दिल उसका सिल-सा लगा है।
तंज कसता वह तेरी वफ़ा पे
अब रहम उसका खिल-सा लगा है।
माँगते हो तुम खैरात उससे
वह तो' मुझको बेदिल-सा लगा है।
"मौलिक व अप्रकाशित"@मनन
खिल=घाव के मवाद कीअंतिम किश्त
सिल=पत्थर

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Comment by Manan Kumar singh on December 18, 2015 at 7:01am
आदरणीय सारथी जी,आभार आपका
Comment by Manan Kumar singh on December 18, 2015 at 7:00am
आदरणीय मिथिलेश जी,सादर आभार
Comment by Manan Kumar singh on December 18, 2015 at 6:58am
आदरणीय श्याम नारायण जी,आभार व नमन
Comment by Saarthi Baidyanath on December 17, 2015 at 2:02pm

बहुत बढ़िया 

Comment by Samar kabeer on December 15, 2015 at 10:40pm
जनाब मनन कुमार सिंह जी,आदाब,इस प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Shyam Narain Verma on December 15, 2015 at 6:07pm
बधाई , इस प्रस्तुति पर , सादर।

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