For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खुशियाँ उनकी ,

आतिशवाजी की तरह छूती हैं , आसमान।

फुदकती हैं, फब्बारों सी, और 

उनके अट्टहास में, अनजान, भी होते हैं भागीदार-

जब होते हैं तल्लीन वे, जुगुप्सा में ....।

 

आत्मज्ञान की चर्चा के लिए उन्हें,

रहता है हमेशा- कालाभाव,  

समयाभाव।

पर, ‘इसके‘ लिये! कम पड़ते हैं, चैबीसों घंटे और, 

अनिवार्य काम भी कर दिये जाते हैं स्थगित, निलंबित....।

 

दूसरे  क्या कहेंगे ? इसकी रहती है चिंता अधिक।

इसलिए, भरते हैं दंभ, आडम्बर ओढ़ कर, विवेकी होने का।

चलाते अनेक कालेधन्धे जनसेवा के नाम पर, 

समाज सहित, आजीवन ये,

अपने आप को ही देते हैं धोखा।

 5 जुलाई 2013

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 526

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr T R Sukul on December 16, 2015 at 10:41pm

Respected vijay nikore महोदय ! वहुप्रतीक्षित आपकी टिप्पणी से प्रसन्नता हुई। विनम्र आभार । 

Comment by vijay nikore on December 16, 2015 at 3:08pm

आपकी रचना अच्छी लगी। हार्दिक बधाई।

Comment by Dr T R Sukul on December 6, 2015 at 11:25am

आदरणीय laxman dhami ji ,धन्यवाद सहित  विनम्र आभार। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 6, 2015 at 8:23am

इस सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई l

Comment by Dr T R Sukul on December 5, 2015 at 10:47pm

विनम्र आभार , आदरणीय भंडारी जी !कविता को मान  देने और सार्थक टिप्पणी के लिए। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 5, 2015 at 8:37pm

दूसरे  क्या कहेंगे ? इसकी रहती है चिंता अधिक।

इसलिए, भरते हैं दंभ, आडम्बर ओढ़ कर, विवेकी होने का।

चलाते अनेक कालेधन्धे जनसेवा के नाम पर, 

समाज सहित, आजीवन ये,

अपने आप को ही देते हैं धोखा।   ----  बहुत सही बात कही , आदरणीय आपको हार्दिक बधाई , हर कोई एक नकली ज़िन्दगी ही जी रहा है आजकल !!

Comment by Dr T R Sukul on December 4, 2015 at 10:15pm

आदरणीय ज्योत्स्नाजी , कविता पसंद करने के लिए विनम्र धन्यवाद। 

Comment by Dr T R Sukul on December 4, 2015 at 10:14pm

आदरणीय कान्ता जी , कविता पसन्द करने और सार्थक मनोभावना व्यक्त करने के लिए धन्यवाद सहित  विनम्र आभार। 

Comment by jyotsna Kapil on December 4, 2015 at 9:22pm
वाह ! बहुत बढ़िया रचना है आदरणीय त्रैलोक्य रंजन जी।बधाई स्वीकार कीजिये।
Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 5:45pm

पर , ‘इसके‘ लिये! कम पड़ते हैं, चैबीसों घंटे और,
अनिवार्य काम भी कर दिये जाते हैं स्थगित, निलंबित....।------ वाह !!! "जुगुप्सा" को बहुत खूब भाव दिए है आपने आदरणीय त्रैलोक्य रंजन जी। यहाँ एक नए रंग में आपकी रचना पढ़ने को मिली ,बहुत पसंद आया। बधाई आपको।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
18 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
19 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
19 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
20 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service