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जिन्दगी की ठोकरों ने मुस्कुरा कर ये कहा। " अज्ञात "

जिन्दगी में जीत का तब,                              

कुछ नहीं संशय रहा,                                 

धैर्य का जब जब सहारा,                             

हर घड़ी , हरशय रहा ।

जिन्दगी में दिन सितम के,                        

भी सभी  कट जायेंगे ।                                       

जिन्दगी की ठोकरों ने ,                          

जब मुस्कुरा कर ये कहा।                                              

रात काली भी गुजर जायेगी,                        

बस, कुछ पल रुको,                                           

जब सुबह की एक किरण ने,                     

पास आकर ये कहा।                            

हसरतें भी सब हों पूरी,                         

ये मुनासिब है नहीं,                                

दस्तूर ने दुनिया के जब,                                 

दिल में समाकर ये कहा।                       

है अकेले ही निपटना ,                        

जद्दोजहद से जिन्दगी की,                       

मुश्किलों ने पास में,                             

अपने बुलाकर ये कहा।                         

जिन्दगी की राह में,                               

जो चल पड़ा विश्वास से,                         

खुदबखुद मैं आ गई फिर,                       

मंजिलों ने पास आकर ये कहा ।

अजय शर्मा  " अज्ञात  "

मौलिक एवं अप्रकाशित।

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on November 26, 2015 at 6:48pm

जिन्दगी की राह में,                               

जो चल पड़ा विश्वास से,                         

खुदबखुद मैं आ गई फिर,                       

मंजिलों ने पास आकर ये कहा ।... बहुत खूब!

Comment by Ajay Kumar Sharma on November 25, 2015 at 3:24pm

सौरभ सर मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु आपका कोटिशः धन्यवाद। संतुलित काव्य रचना हेतु सदैव आपका आशीर्वाद और समर्थन का आकांक्षी हूँ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 25, 2015 at 2:33am

आपकी रचना के कथ्य में क्लिशे है. लेकिन आपने पंक्तियों में प्रवाह बनाये रखने का भरपूर प्रयास किया है. इसका कारण पंक्तियों में अनायास ही फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन् फ़ाइलातुन पर शब्दों का नियंत्रित हो जाना है. 

बहरहाल, आप प्रयासरत रहें. 

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