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मोहब्बत क्यूँ न कर लेती

1222 1222
~~~~~~~~~~~~~~
निगाहों में संवर लेती।
मुहब्बत क्यूँ न कर लेती?

बहुत सुंदर शहर है ये।
मेरे दिल की खबर लेती।।

उदासी का मैं दुश्मन हूँ।
तू दामन क्यूँ न भर लेती।।

नदी कब तक यूँ भटकेगी?
समन्दर में उतर लेती।।

तेरे ख्वाबों की मन्ज़िल हूँ।
कदम अपने इधर लेती।।

तू ख़ुश्बू और मैं "पंकज"।
आ मुझपे ही बिखर लेती।।

~~~~~~~~~~~~~~
मौलिक एवम् अप्रकाशित

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 16, 2015 at 3:04pm
आदरणीय रवि सर ग़ज़ल पर आपका आशीर्वाद मिला; सादर आभार और प्रणाम्
Comment by Ravi Shukla on November 16, 2015 at 2:49pm

आदरणीय पंकज जी बहुत बहुत बधाई सुन्‍दर गज़ल कही है आपने ओर बह्र को भी बखूबी निभाया है

नदी कब तक यूँ भटकेगी?
समन्दर में उतर लेती।।  बहुत सुन्‍दर बधाई ।

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