अनहोनी - (लघुकथा) –
दीपावली पूजन की तैयारी हो रही थी!दरवाज़े की घंटी बजी!जाकर देखा,दरवाज़े पर अनवर खान साहब सपरिवार मिठाई का पैकेट लिये खडे थे!हमारे ही मोहल्ले में रहते थे!मोहल्ले के इकलौते मुसलमान थे!किसी के जाना आना नहीं था!पूरा मोहल्ला एक तरफ़ और खान साहब एक तरफ़!कोई तनाव या टकराव नहीं था! सब शांति से चल रहा था मगर फ़ासले थे!
अचानक ऐसी स्थिति का सामना कैसे करें, जिसके बारे में कभी सपने में भी नहीं सोचा!हमारे कुछ कहने सुनने से पहले खान साहब ने मिठाई हाथ में देते हुए दिवाली की बधाई दे डाली!मज़बूरन हमने भी औपचारिक मुस्कुराहट के साथ स्वागत किया,
"आइये अनवर भाई,आज यह अनहोनी कैसे हुई"!
"गुप्ता जी, यह तो शुरूआत है,असली अनहोनी तो अब होगी"!
"क्या धमाका करने जा रहे हो अनवर भाई"!
"गुप्ता जी, इस दिवाली से हमारे पूरे परिवार ने शाकाहार की क़सम ली है,और इस बार बक़रीद पर पूरे मोहल्ले को शाकाहारी मीठी ईद वाला भोजन करायेंगे"!
"वाह अनवर भाई, यह हुई ना बात,इसके लिये फ़िर बधाई, हम लोगों ने छोटे से मोहल्ले को ही हिंदुस्तान और पाकिस्तान बना रखा था"!
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय सुनील वर्मा जी!
हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी!आपकी टिप्पणी सदैव मुझे अतिरिक्त ऊर्ज़ा प्रदान करती हैं!पुनः आभार!
हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ पांडे जी!आपकी टिप्पणी से लघुकथा के साथ साथ मेरा हृदय भी भाव विभोर हो गया!सादर!
आदरणीय तेजवीर जी, शानदार लघुकथा. दिल जीत लिया आपने इस सकारात्मक प्रस्तुति से. बहुत बहुत बधाई
कई बार ऐसी बातें चकित करती लगती हैं जिन्हें अपने समाज की दिनचर्या होनी थी. असहिष्णुता का पाठ हम पढ़ते हैं जबकि यह समाज सदा से सहिष्णु रहा है. सकारात्मक दृष्टिकोण को सामने लाती इस सार्थक रचना केलिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेज़वीरजी.
शुभ-शुभ
हार्दिक आभार आदरणीय आबिद अली मंसूरी जी!
achchhi hi nahien bahut achchhi, vadhayi aapko aadarniye tej veer ji!
हार्दिक आभार आदरणीय राहिला जी!मुझे आभास हो रहा है कि मेरा प्रयास सफ़ल हो गया!
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