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ग़ज़ल- बेरहम दुनिया ने मुझसे शायरी भी छीन ली।

2122 2122 2122 212

आखिरी उम्मीद की अब ये कली भी छीन ली।
बेरहम दुनिया ने मुझसे शायरी भी छीन ली।

रौशनी की बात तो किस्मत में लिक्खी ही नहीं ।
छुप के रोया तो खुदा ने तीरगी भी छीन ली।

दिल लगाया था किसी से दिल्लगी के वास्ते।
दिल्लगी क्या कर ली ख्वाबों की हँसी भी छीन ली।

मय न पीने को मिली तो अश्क ही पीने लगा ।
देख यह किस्मत ने आँखों की नमी भी छीन ली।

दोस्ती के फूल जब मुरझा गये इक मोड पर।
मुफलिसी ने फिर कहानी प्यार की भी छीन ली।

वक्त जब बरबादियों के बीच लेकर आ गया।
तो किसी ने वो निशानी यार की भी छीन ली।

बदनसीबी साथ 'राहुल' इस तरह मेरे रही।
दाग देने को जमीं शमसान की भी छीन ली।

मौलिक व अप्रकाशित ।

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Comment by Rahul Dangi Panchal on September 14, 2015 at 9:07pm
आदरणीय मनोज भाई जी धन्यवाद ।
Comment by मनोज अहसास on September 14, 2015 at 4:02pm
बहुत खूब
आदरणीय राहुल जी
सादर

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