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चट्टे-बट्टे (लघुकथा)/ रवि प्रभाकर

‘मंत्री जी ! ‘भाई’ अब फिर से नयी ‘डिमांड’ कर रहा है। पिछले हफ्ते डी.आई.जी. साहिब को ‘सेवा’ पहुँचाई है और अभी ‘पार्टी फंड’ भी जमा करवाना है । आपको तो पता ही है कि आपके इलेक्शन के वक्त भी हम किसी भी तरह पीछे नहीं हटे थे।  तो फिर कभी ‘भाई’ तो कभी पुलिस।  ऐसे कैसे चलेगा ?’
‘अरे परेशान काहे हो रहे हो। अब अकेले तुम्हारी वजह से ही तो इलेक्शन नहीं न जीते हैं हम... सभी ने साथ दिया था हमारा और ध्यान भी तो सभी का ही रखना पड़ेगा ना। और तुम घबरा काहे रहे हो, ऊ ससुरा जो पुल बना रहे हो ना उसमें से दो मुट्ठी सीमेंट ‘और’ निकाल लेना।’

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 5, 2016 at 5:53pm

बहुत सुंदर लघुकथा हुई है आदरणीय सर | हार्दिक बधाई |

Comment by kanta roy on July 20, 2015 at 5:04pm
यही तो होता है हमेशा सुनने पढने में भी आता है । यथार्थ का आईना है आपका यह लेखन । बिलकुल सटीक चित्रण चट्टे - बट्टे का । बधाई आदरणीय रवि जी ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 19, 2015 at 10:00pm

आदरणीय रवि प्रभाकर जी, बेहतरीन लघुकथा, शीर्षक को सार्थक करती रचना, हार्दिक बधाई 

Comment by Omprakash Kshatriya on July 19, 2015 at 8:11am
वाह ।। शीर्षक को सार्थक करती एक जोरदार रचना बधाई आप को
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on July 18, 2015 at 11:34pm

सच है , सादर बधाई 

सबको लेकर चलना होता है . 

Comment by Rita Gupta on July 18, 2015 at 7:12pm

सही बात है सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं . भ्रष्टाचार के हमाम में सारे ......हैं . व्यवस्था पर चोट करती लघु कथा .

Comment by Dr. (Mrs) Niraj Sharma on July 18, 2015 at 2:22pm

बहुत सुन्दर लघुकथा आ. रवि जी

Comment by विनय कुमार on July 18, 2015 at 1:47pm

ये फर्माईशें कभी ख़त्म नहीं होतीं , बेहतरीन लघुकथा । पंच लाइन जबरदस्त है , बहुत बहुत बधाई आदरणीय रवि प्रभाकर जी..

Comment by TEJ VEER SINGH on July 18, 2015 at 11:36am

आदरणीय रवि जी, वाह, क्या करारा तमाचा मारा है ,आजकल की राजनैतिक सांठ गांठ पर!और पंच लाइन,दो मुट्ठी सीमेंट "और" निकाल लेना, गज़ब!हार्दिक बधाई रवि जी!

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