अम्मा फ़ैल कर जमीन पर बैठी आवाज़ करके चाय सुड़क रही थी I मैं अपने दोनों बच्चों के चेहरों पर, अम्मा को लेकर चिढ साफ़ देख पा रही थी I
" सविता , तू डब्बा भर के मट्ठियाँ क्यों नहीं बना के रख लेती ,I सुबह शाम पकड़ा दिया कर इनके हाथों में I दिन भर तंग करते हैं ये बना वो बना I"
" माँ , इन्हें पसंद नहीं है मट्ठियाँ I"
" पसंद नहीं हैं ? अरे तुम्हारी मम्मा की बुआ , गर्मी की छुट्टियों में आती थी , दो महीने के लिए अपने बच्चों के साथ ,और दो बड़े बड़े डब्बे भर कर , मट्ठियाँ बना के लाती थी I सब बच्चे वो ही खाते फिरे थे सारे दिन I, और सबसे ज्यादा खाती थी , ये सविता , तुम्हारी मम्मा "I
" मम्मा , वो सारी छुट्टियाँ आप लोगों के साथ रहते थे i ? डिस्टर्ब नहीं होते थे आप लोग i i
मैं अम्मा को देख रही थी, जो आस पास से बेखबर फिर से चाय सुड़कने में लग गई थी , सुड़क ,सुड़क I
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
अपना ! निजी ! व्यक्तिगत ! एकाकीपन नहीं स्वयं के हिताकांक्षी जीवन-क्षणों का बोध कराते ये शब्द अब व्यवाहारिक भाव का हिस्सा हो चुके हैं. समवेत जीवन जीने को जो समाज दकियानूसी समझने लगे वह भविष्य में अपने लिए अधीरता मोल ले लेता है.
अच्छी लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई. सतत प्रयास से शिल्पगत प्रस्तुतीकरण सुगढ़ होता जायेगा.
शुभेच्छाएँ
कथा की सराहना के लिए आपका आभार , आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी I
अब तो इतने दिन का मेहमान किसे भायेगा . सारी गर्मी की छुट्टी . बढ़िया कथा .
प्रशंसा के लिए धन्यवाद आदरणीय जवाहरलाल सिंह जी I एक प्रश्न अक्सर दिमाग में आता है कि ' पंच ' शब्द के लिए हिंदी में कौनसा सटीक शब्द हो सकता है I आजकल हम अक्सर इस शब्द का इस्तेमाल करते हैं I
वाह गजब का पञ्च मारा आपने! बहुत सुन्दर! अपना दिन किसे याद रहता है?
कथा की प्रशंसा के लिए आभार ,आदरणीय अमन कुमार जी I
कथा की सराहना के लिए आपका तहे दिल से आभार आदरणीय विनय कुमार जी I
मैंने त्रुटी ठीक कर ली है I कथा की प्रशंसा के लिए धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी I
सत्य घटना का वर्णन सी कथा है , अति सुंदर !
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