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अभी जीने की हसरत मुझमें बाकी है

1222/ 1222/ 1222
मेरे दिल में अजब सी बेकरारी है
अभी जीने की हसरत मुझमें बाकी है

मैं मेरी हसरतों के साथ तन्हा हूँ
किसे परवाह मेरी चाहतों की है

वो बरसेगा कि मुझ पर टूट जायेगा
अभी बादल मेरे सर पर उठा ही है

अचानक शह्र क्यों जलने लगा कहिये
शरारों को किसी ने तो हवा दी है

हक़ीकत ही कही थी मैंने तो ऐ दोस्त
ये देखो जान पर मेरी बन आई है

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Pari M Shlok on July 4, 2015 at 10:14am
अचानक शह्र क्यों जलने लगा कहिये
शरारों को किसी ने तो हवा दी है (वाह)

वो बरसेगा कि मुझ पर टूट जायेगा
अभी बादल मेरे सर पर उठा ही है - ( क्या कहने )

बधाई आपको शिज्जु जी
Comment by MAHIMA SHREE on July 3, 2015 at 9:30pm

अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई आपको शिज्जु जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 3, 2015 at 6:33pm

आदरणीय शिज्जु भाई , अच्छी गज़ल हुई है , हार्दिक बधाइयाँ आपको ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 3, 2015 at 1:33pm

आदरणीय शिज्जु भाई जी,

शानदार ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद हाज़िर है.

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