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2122  2122 2122 2  

फाईलातुन  फाईलातुन  फाईलातुन फा  

हम किसी से मिलने उसके घर नहीं जाते

आप भी  है जिद  में मेरे दर नहीं आते

 

बेबसी  महबूब  की किस भाँति  समझाऊँ  

आज भी  उनको   मेरे  चश्मेतर नहीं भाते

 

जिन्दगी  बीती  है उनकी  सूफियाना सी   

मस्त तो है  रहते   साजो पर नहीं गाते

 

इश्क  में हूँ  जांबलब  मेरा  भरोसा क्या

फ़िक्र उनको  कब है  चारागर  नहीं लाते

 

एक साया उसका   बांटी  जिन्दगी  हमने  

अन्यथा जीवन में  कुछ भी कर नहीं पाते

(मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by Rahul Dangi Panchal on June 17, 2015 at 6:02pm
आप भी है जिद में मेरे दर नहीं आते
यह भी बेबहर हो रहा है आदरणीय
Comment by Rahul Dangi Panchal on June 17, 2015 at 5:58pm
आदरणीय बहुत सुन्दर भावों से सुसज्जित गजल कही है आपने

पर " आज भी उन्हें मेरे चश्मेतर नहीं भाते" यह मिसरा बेबहर है इसे देख लिजिए उन्हें का वज्न १२ होता सादर
Comment by narendrasinh chauhan on June 17, 2015 at 5:31pm

लाजवाब गजल के लिए बधाई स्वीकार करे

Comment by Shyam Narain Verma on June 17, 2015 at 4:43pm
बहुत सुन्दर ... सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय

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