"पहले तो हमें नौकरी ही नहीं मिलती। अगर मिल भी जाए तो सालों साल रगड़ते रहो, कोई प्रमोशन नहीं। और एक ये हैं ?"
"और लो जन्म ऊँची जात में।"
पिघले हुए सीसे की तरह ये शब्द उसके कानों में उतर रहे थे ।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
सटीक ...गागर में सागर ..!!!
बहुत बहुत आभार आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी..
बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी , सच में ये सब बातें बस में नहीं हैं..
कम सब्दों में अच्छी सीख आ.vinaya kumar singh जी |
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आ० या तो टर्न की बात है . अंग्रेजों के राज में ऊंची जाती वाले मलाई खाते ते अब और लोग खा रहे है .एक्सीडेंट ऑफ़ बर्थ किसी के बस में नहीं ------------भाग्यम फलतु सर्वत्र न च विद्या न च पौरुषम ---- जय हो ----कथा में अंतिम वाक्य आवश्यक नहीं था . सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी | जी हाँ , बहुत से अन्य विषय / परिपाटी इत्यादि हैं जिनपर लिखा जा सकता है , सहमत हूँ आपसे , सादर .
भाई जन्म लेना हाथ में तोनहीं है. सामाजिक व्यवहार, आचरण, परिपाटियों, परम्पराओं को कुछ बेहतर लानत भेजी जा सकती है. वैसे ऐसे केस कई बार एकांगी ही सोचे लगते हैं. अतः चर्चा-परिचर्चा की गुंजाइश बनी रहती है.
प्रस्तुति केलिए हार्दिक शुभकामनाएँ.
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