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नसरी नज़्म :- तन्क़ीद निगार

तनक़ीद निगार
अच्छा भी,बुरा भी
अच्छा इसलिये कि वो
हमें हमारी ख़ामियाँ बताता है
हमें सही सम्त (दिशा) देता है
लेकिन जब यही तनक़ीद निगार
प्रोफ़ेश्नल,कारोबारी,हो जाता है
तब ये तख़लीक़ के
महासिन नहीं देखता
उस तख़लीक़ में
धड़कता दिल नहीं देखता
उसकी नज़र सिर्फ़ और सिर्फ़
ऐब तलाश करती है
उस तख़लीक़ में
जो शाईर की,कवि की,
लेखक की,मुसन्निफ़ की
अपनी जागीर है
वो इसमें ऐब निकालकर,कीड़े निकालकर
ख़त्म कर देता है
उस महल को जो ख़यालों में बना था
बिखेर देता है,
तन्क़ीद निगार
अच्छा भी बुरा भी !

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 715

Comment

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Comment by Samar kabeer on May 7, 2015 at 10:38am
जनाब गिरिराज भंडारी जी ,आदाब ,सही फ़रमाया आपने,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ,नेट अभी भी सही काम नहीं कर रहा है ।
Comment by Samar kabeer on May 7, 2015 at 10:33am
जनाब मिथिलेश वामनकर जी,आदाब,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 7, 2015 at 10:31am
जनाब "जान" गोरखपुरी साहिब ,आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 7, 2015 at 10:29am
जानाब नीरज कुमार 'नीर' जी,आदाब, आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by Samar kabeer on May 7, 2015 at 10:26am
जनाब नीलेश "नूर" जी ,आदाब, बात आप तक पहुँच गई,लिखना सार्थक हुवा,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।
Comment by Samar kabeer on May 7, 2015 at 10:24am
आली जनाब डॉ.विजय शंकर जी ,आदाब,आपकी विस्तृत और सकारात्मक प्रतिक्रिया ने मेरी नज़्म को बल प्रदान किया ,और उसका मान बढ़ाया मेरा नेट इस वक़्त भी सही काम नहीं कर रहा है,लिखना तो बहुत कुछ चाहता था,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on May 7, 2015 at 10:15am
जनाब मनोज कुमार अहसास जी ,आदाब ,नसरी नज़्म भी अतुकांत की तरह ही होती है ,नज़्म में आपकी शिर्कत के लिये बहुत बहुत शुक्रगुज़ार हूँ ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 6, 2015 at 11:39am

सभी आदरणीय पाठको से - 

अभी आदरणीय समर भाई जी से फोन में बात हुई तो उन्होने बताया कि उनके यहाँ नेट ओपन बुक्स आन लाइन नहीं खोल पा रहा है , ऐसा ही एक बार मेरे साथ भी हो चुका है । उन्होंने अपनी अनुपस्थिति के लिये सभी से क्षमा मांगी है ।   सादर निवेदन ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2015 at 11:04pm

आदरनीय समर भाई , बहुत सतीक बात कही , तनकीद निगारी तलवार की धार मे चलने जैसा काम है , कुछ छोट गया कहने तो हम कटे और अनावश्यक कुछ कह दिये तो सामने वाले की गर्दन कटी  ॥ आपको रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 5, 2015 at 10:39pm

आदरणीय समर कबीर जी एक आलोचक पर बहुत सुन्दर नज्म हुई . हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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