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बदली ने टांग अपनी अड़ाई हुई तो है
सूरज से आँख उसने मिलाई हुई तो है
कहने लगे हैं नक़्श हरिक शक्ल के यही
चक्की में ज़िन्दगी की पिसाई हुई तो है
बातों में तेवरी है बग़ावत की, मान ली
लेकिन जो सच थी बात, उठाई हुई तो है
देखें कि घर में रोशनी आती है कब तलक
तारीकियों के संग लड़ाई हुई तो है
सद शुक्र, ऐ तबीब दवा और मत लगा
उनकी हथेलियों से सिकाई हुई तो है
माना कि, फौज आज खड़ी सरहदों पे , पर
दुश्मन के साथ थोड़ी ढिलाई हुई तो है
हिलता नहीं जो संगे ग़रीबी तो क्या ग़लत
सरकार खुद पसीना नहाई हुई तो है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय नज़ील भाई, हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीय गिरीराज भंडारी जी सुन्दर रचना लिए हार्दिक बधाई। …
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