बनके अश्रु जब टपकेगी दिल की बेचैनी
मोहब्बत है तुझे हमसे फिर मान लूँगा मैं |
बयां कर न कर पढ़ के चेहरे की हालत
जरुरत है तुझे मेरी फिर जान लूँगा मैं |
जाके मिल गयी तुम गर सितारों में
देख चमकने की अदा फिर पहचान लूँगा मैं |
पकड़ हाथों में हाथ बनाके दिल की रानी
जहाँ कोई न हो दुश्मन फिर जहान लूँगा मैं |
सुनहरे केश और आँखों पे पलकों का ज़ेबा
बनाके तुझे भेजा उसका फिर एहसान लूँगा मैं |
बुलावा आ गया तेरा गर मुझ से पहले
रख के गिरवी अपनी जाँ तुम्हें फिर माँग लूँगा मैं |||
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"मौलिक व अप्रकाशित "
Comment
आ.प्रशांत त्रिपाठी बहाई जी ,,रचना पर उत्साहवर्धक टिप्पणी देने हेतु आपका आभार |
wah maharshi ji..aapne bhut accha likha h..ummeed h aap aise hi likhte rhenge...bhut khub tripathi ji,...
आ. खुर्शीद जी आपने मेरी रचना को सराहा ,,,मन आनंदित हुआ ,,आपका आभार सादर |
आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी ,सुन्दर प्रस्तुति है |सादर अभिनन्दन ,,,,,विशेष दाद........
जाके मिल गयी तुम गर सितारों में
देख चमकने की अदा फिर पहचान लूँगा मैं |
पकड़ हाथों में हाथ बनाके दिल की रानी
जहाँ कोई न हो दुश्मन फिर जहान लूँगा मैं |
सुनहरे केश और आँखों पे पलकों का ज़ेबा
बनाके तुझे भेजा उसका फिर एहसान लूँगा मैं |
आप सभी विद्वानों का ,,मेरे पहले प्रयास पर उत्साहवर्धन हेतु शुक्रिया |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति , आदरणीय महर्षि भाई , हार्दिक बधाइयाँ ॥
सुंदर भावपूर्ण प्रेम में आसक्त और बेहद ही कोमल रचना पर हार्दिक बधाई |
रचना पर प्रोत्सहन देने हेतु आप सभी गुनीजनों का हार्दिक आभार ,,,मैंने गजल लिखने की कोशिश की है आशा है ,,अपने गुरुजन\भाईओं की मदद से सीख सकूँगा,,पुनः बहुत बहुत आभार |
भाई महर्षि त्रिपाठी जी बहुत खूब /जाके मिल गयी तुम गर सितारों में
देख चमकने की अदा फिर पहचान लूँगा मैं/ सुन्दर रचना , बधाई आपको !
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