For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरा जीवन पी  गया, तेरी कैसी प्यास ।

पनघट से पूछे नदी, क्यों तोड़ा विश्वास ।१।

                 

मन में तम सा छा गया, रात करे फिर शोर।

दिनकर जो अपना नहीं, क्या संध्या क्या भोर ।२।

                 

बैठे बैठे रो रही, बरगद की अब छाँव ।

कौन चुराकर ले गया, पंछी वाला गाँव ।३।

                 

नटखट को फटकारियें, सोचें उसके बाद ।

जायेगी किस पे भला, अपनी है औलाद ।४।

                 

कच्चा मन! कच्ची उमर ! उफ़ टूटे जब ख्वाब ।

बित्ते भर रूमाल में,....... मुट्ठी भर सैलाब ।५।

                 

अपना घर करने लगा, अपना ही अपमान ।

दस्तक सुनकर मौन है,....दीवारों के कान ।६।

                 

एक अकेले प्रश्न पर,  सारी गलियाँ मौन ।

पूछ रहा है वक्त भी,... राह दिखाएँ कौन ।७।

                 

उजड़े से सब खंडहर,....... कहते है इतिहास ।

सोच समझ के कीजिये, अपनों पर विश्वास ।८।

 

 

-------------------------------------------------------

(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 

-------------------------------------------------------

Views: 1030

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 3, 2015 at 6:38pm

परम  आदरणीय sharadindu mukerji सर, रचना पर आपकी उपस्थिति से ही बहुत मान बढ़ गया मेरा. सराहना और आशीर्वाद के लिए हार्दिक आभार. नमन.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on February 3, 2015 at 5:12pm
अद्भुत....अद्भुत.....आश्चर्यजनक ढंग से सुंदर दोहावलियाँ. आदरणीया डॉ प्राची जी की टिप्पणी ने इस रचना को और प्रगाढ़ किया है. हार्दिक साधुवाद माननीय मिथिलेश जी.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 15, 2015 at 8:20pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय हरिप्रकाश जी 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 15, 2015 at 8:12pm

मेरा जीवन पी  गया, तेरी कैसी प्यास ।

पनघट से पूछे नदी, क्यों तोड़ा विश्वास .....इस परिवर्तन के साथ संपूर्ण रचना ही सुन्दर है, आदरणीय मिथिलेश जी  पुनः हार्दिक बधाई आपको !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 15, 2015 at 7:38pm

आदरणीया छाया शुक्ला जी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. धन्यवाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 15, 2015 at 7:36pm

आदरणीय गिरिराज सर, दोहावली पर आपके स्नेह और सराहना के लिए हार्दिक आभार, धन्यवाद.

Comment by Chhaya Shukla on January 15, 2015 at 6:56pm

आदरणीय , मिथिलेश वामनकर जी
भरपूर मारक क्षमता से सजे इन दोहों की बधाई स्वीकारें |

सादर नमन !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 15, 2015 at 8:27am

बैठे बैठे रो रही, बरगद की अब छाँव ।

कौन चुराकर ले गया, पंछी वाला गाँव ।३।

कच्चा मन! कच्ची उमर ! उफ़ टूटे जब ख्वाब ।

बित्ते भर रूमाल में,....... मुट्ठी भर सैलाब ।५।

आदरणीय मिथिलेश भाई , लाजवाब दोहावली के लिये बधाइयाँ । ऊपर के दोहों का तो कहना ही क्या , वाह । अनेकों बधाइयाँ ।

                 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 15, 2015 at 8:08am

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी आपकी दोहावली पर विस्तृत, सार्थक और स्नेहपूर्ण प्रतिक्रिया पाकर अभिभूत हूँ. आपके मार्गदर्शन अनुसार दोहावली  संशोधित करता हूँ.  मार्गदर्शन और सराहना के लिए हृदय से आभारी हूँ। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 15, 2015 at 8:03am

आदरणीय शिशिर द्धिवेदी जी बहुत बहुत धन्यवाद, हार्दिक आभार। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
3 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
4 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
5 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
5 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
9 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
13 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
15 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान की परिभाषा कर्म - केंद्रित हो, वही उचित है। आदरणीय उस्मानी जी, बेहतर लघुकथा के लिए बधाइयाँ…"
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service