नयन सखा डरे डरे, प्रमाद से भरे भरे......
सबा चले हजार सू फिज़ा सिहर सिहर उठे
भरी भरी हरित लता खिले खिले सुमन हँसे
चिनार में कनेर में खजूर और ताड़ में
अड़े खड़े पहाड़ पे घने वनों की आड़ में
उदास वन हृदय हुआ उदीप्त मन निशा हरे.............
शज़र शज़र खड़े बड़े करें अजीब मस्तियाँ
विचित्र चाल से चले बड़ी विशेष पंक्तियाँ
सदा कही नहीं मगर दिलो-दिमाग कांपता
मधुर मधुर मृदुल मृदुल प्रियंवदा विचिन्तिता
विचारशील कामना प्रसंग से परे परे..........
ख़ुदा नहीं मिले कभी सनम जुदा जुदा रहे
अस्वस्थ व्यस्त सा हृदय सदा पिया पिया कहे
अजीब इश्क शै खुदा मिला कभू जुदा कभू
पिया प्रभु से हो गए कि हो गए पिया प्रभु
असीम एक नाम से विरक्त मन जगत तरे.........
सुखन, ग़ज़ल, कता ख़ुदा नजीब अर्जमंद से
अकाट्य तथ्य से महीन शब्द अर्थ द्वन्द से
खला नहीं नज़र नज़र मगर करे असर खला
असाध्य साधना नहीं तथापि कर्म बावला
निपंग साधना यहाँ विकल्प से सदा डरे...........
-------------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित) © मिथिलेश वामनकर
-------------------------------------------------------------
Comment
सबा चले हजार सू फिज़ा सिहर सिहर उठे
भरी भरी हरित लता खिले खिले सुमन हँसे
चिनार में कनेर में खजूर और ताड़ में
अड़े खड़े पहाड़ पे घने वनों की आड़ में
उदास वन हृदय हुआ उदीप्त मन निशा हरे.............
आदरणीय मिथिलेश जी गीत की लय के साथ मन झूम उठा |ध्वनियों की गज़ब गुलकारी है ऐसा लग रहा है शब्द बज रहें हैं |हर बंध एक वाद्य-यंत्र सा है | सचमुच मज़ा आ गया , सादर अभिनन्दन |
आदरणीय बागी सर इस स्नेह और उत्साह वर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा ह्रदय टंकण त्रुटी को --हृदय-- सही करता हूँ।
लला लला लला लला लला लला लला लला
क्या कहने आदरणीय मिथिलेश जी, क्या खुबसूरत गीत हुआ है, सबसे अच्छी बात आंतरिक मात्राओं का संयोजन है . सुन्दर प्रयोग, मुझे बहुत अच्छा लगा, ह्रदय को हृदय कर लें, बधाई स्वीकार करें आदरणीय.
इस नवगीत की गयेता और शब्द-प्रयोग की विविधता ने मोहित का दिया |बधाई नहीं साधुवाद कहता हूँ |
आदरणीय गिरिराज सर आपकी उत्साहवर्धक और प्रेरणास्पद प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहती है. आपको यह प्रयास पसंद आया लिखना सार्थक हुआ. मेरी रचनाओं में आपके उत्साहवर्धन, सहयोग स्नेह और आशीर्वाद का बहुत बड़ा योगदान है.... सदैव प्रयासरत रहता हूँ कि यह स्नेह और आशीर्वाद सदा बना रहे. नमन .... (सूं को सू करता हूँ)
आदरणीय मिथिलेश भाई , बेमिसाल गीत रचना हुई है , दिल से बधाइयाँ स्वतः निकल रहीं है , स्वीकार करें ।
एक बात --- सूं को सू कर लीजियेगा , सही शब्द सू है ।
आदरणीय gumnaam pithoragarhi सर जी नवगीत के इस प्रयास पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार धन्यवाद
आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी नवगीत के इस प्रयास पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार धन्यवाद
आदरणीय Ram Ashery जी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार धन्यवाद
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2025 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online