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कुछ लिखना चाहता हूँ

पर सोचता हूँ क्या लिखूं 

कलम जब होती है हाथ में

दिल करता है कुछ सांय-सांय

सोचता हूँ

पुण्य लिखूं

सेवा लिखूं, सम्मान लिखू

हाथ से फिसलता आसमान लिखूं

सत्य लिखूं , प्रेम लिखूं

ममता लिखूं , मौन-व्यापार लिखूं

किसी उजड़ी बस्ती का हाहाकार लिखूं

पाप लिखूं, शाप लिखूं

मन का परिमाप लिखूं

भूख लिखूं , स्वार्थ लिखूं

टी वी से झांकता

आधुनिक परमार्थ लिखूं 

थाना लिखूं, जेल लिखूं

खूनी राजनीति के सौ-सौ खेल लिखूं

गीत लिखूं ,प्रीति लिखूं

कवि का संभाव्य लिखूं

सांवले क्षितिज पर

काल का काव्य लिखूं

पोथी लिखूं, भेद लिखूं

पाश्चाताप खेद लिखूं

या नए युग का

कोई एक वेद लिखूं

 

मै अकेला नहीं लिखता

एक बड़ी जमात है

लिख रहा है युगों से

लिखेगा युगो तक

पर आज मेरा और सबका

हाथ कांपता है

जब कोई कहता है

हाँ, लिखो

आदमी  !

(मौलिक/अप्रकाशित )

 

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 15, 2014 at 9:32pm

जवाहरलाल जी

आपका आभार i

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 15, 2014 at 9:14pm

अंतिम चरण---- अनुपम!  सादर श्री गोपाल नारायण जी!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 13, 2014 at 1:40pm

महनीया

आपके अनुमोदन काआभारी हूँ  I

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 13, 2014 at 1:37pm

योगेन्द्र जी

बहुत-बहुत आभार  i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 13, 2014 at 1:36pm

सोमेश जी

अनुगृहित हूँ i  सस्नेह i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 13, 2014 at 1:34pm

विजय सर !

शत-शत आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 13, 2014 at 1:32pm

वामनकर जी

आपका अनुगृहीत हूँ i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 13, 2014 at 1:20pm

नवल किशोर सोनी

आपका आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 13, 2014 at 1:19pm

शिज्जू भाई

आपने तो मुझे निशब्द कर दिया  i  आभारी हूँ i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 13, 2014 at 1:16pm

मीना जी

आपका आभारी हूँ  i

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