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पैसों की बात (लघुकथा)

आज विधानसभा में मामला बहुत गर्म हो गया था। नेता विपक्ष के तो कपड़े तक फाड़ दिए। उनको धक्का-मुक्की में दो-चार थप्पड़-लात भी जड़ दिए गए।
"नेता जी, कल हमें आपका समर्थन चाहिए।"- मंत्री जी का फोन आया।
"कैसा समर्थन! हम कोई समर्थन-वमर्थन नहीं देंगें। कपड़े फाड़ने तक तो ठीक था लेकिन हमारी पिटाई भी हुई है।"- नेता जी ने नाराज होते हुए कहा।
"आपकी नाराजगी जायज है लेकिन कल अगर आपका समर्थन ना मिला तो हम सब की तनख्वाह ना बढ़ पाएगी।"
"अच्छा, पैसों की बात है! तो ठीक है हम मान जाते हैं लेकिन ये मत समझना हम अपना अपमान भूल जाएंगें।"
अगले दिन बिना किसी विरोध के पूर्ण बहुमत से तनख्वाह बढोत्तरी का प्रस्ताव पास हो गया।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 30, 2014 at 4:34pm

एक यही समय तो है जब दलगत  राजनीति से ऊपर उठकर एक स्वर  से प्रस्ताव  पारित कर अपने स्वयम के स्याम ही वेतन भत्ते बढाने के रास्ते  में  कोई रुकावट  पैदा नहीं करते |  पहले अपनी पेट पूजा  बाद में जनता का  ध्यान, फिर भी कहलाते जनप्रतिनिधि है |

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 27, 2014 at 10:53pm

जो चाह है, वो पा ही लेते है. व्यापारियों सा दिमाग लेकर जो साथ चलते हैं. जनता बेवजह परेशान. बहुत बढ़िया लघुकथा, बधाई सर

Comment by विनोद खनगवाल on November 27, 2014 at 9:51pm
आदरणीया राजेश कुमारी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आभारी हूँ।
Comment by विनोद खनगवाल on November 27, 2014 at 9:49pm
आदरणीय सोमेश जी, सही कहा है आपने।
Comment by विनोद खनगवाल on November 27, 2014 at 9:48pm
आदरणीय जवाहर लाल जी आभार
Comment by विनोद खनगवाल on November 27, 2014 at 9:47pm
आदरणीय हरि प्रकाश जी धन्यवाद
Comment by विनोद खनगवाल on November 27, 2014 at 9:47pm
आदरणीया अर्चना जी धन्यवाद
Comment by विनोद खनगवाल on November 27, 2014 at 9:46pm
आदरणीय योगराज जी, समीक्षात्मक टिप्पणी के लिए आभारी हूँ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 27, 2014 at 9:21pm

जी हाँ माया की माया है ये इसका नाम  लेते ही अच्छे अच्छे घूम जाते हैं ऊपर से नेता हो तो बस !!! बहुत जबरदस्त कटाक्ष करती हुई लघु कथा ...बहुत खूब ..हार्दिक बधाई आपको  

Comment by somesh kumar on November 27, 2014 at 8:31pm

हर सत्र में यही दृश्य नजर आता है ,जब रेवड़ी बाँटने की बात आती है तो सारे लंगूर भाई-भाई |ये हर जगह लागू है चाहे संसद हो या कोई सरकरी अहोदे वाले कर्मचारी 

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