For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चार ग़ज़लें (डॉ. राकेश जोशी)

(चार ग़ज़लें)

1

रास्तों को देखिए कुछ हो गया है आजकल

इस शहर में आदमी फिर खो गया है आजकल

 

काँपते मौसम को किसने छू लिया है प्यार से

इस हवा का मन समंदर हो गया है आजकल

 

अजनबी-सी आहटें सुनने लगे हैं लोग सब

मन में सपने आके कोई बो गया है आजकल

 

मुद्दतों तक आईने के सामने था जो खड़ा

वो आदमी अब ढूँढने खुद को गया है आजकल

 

आदमी जो था धड़कता पर्वतों के दिल में अब

झील के मन में सिमटकर सो गया है आजकल

 

2

दूर तक फैला हुआ संसार है

ये मेरे अंतर का ही विस्तार है

 

तुम तलक पहुँचूं तो पहुँचूं किस तरह

क़ैद में हूं हर तरफ दीवार है

 

नाम पर जिसके ये ख़त है रात भर

खांसता है, आजकल बीमार है

 

अब हो ऐसा कुछ पुकारो तुम मुझे

मैं कहूँ, हाँ, हर कोई तैयार है

 

ख़्वाब सब सच हों तुम्हारे, इसलिए

जंग में हूँ, हाथ में तलवार है

 

आज तक जो भी लिखा ‘राकेश’ ने

गीत सारे, हर ग़ज़ल बेकार है

 

3

मेरे दर्द को पहचान ले

फिर मस्जिदों से अजान दे

 

ये भूख से मर जाएगा

इसे मौत कोई आसान दे

 

मुझे गाँव याद है आ गया

मुझे गाँव का वो मचान दे

 

हर आदमी चालाक है

इक आदमी नादान दे

 

संसार की तू फ़िक्र कर

मेरी तरफ भी ध्यान दे

 

इन जंगलों में मौत है

तू आदमी को मकान दे

 

4

अजनबी जब से ज़माना हो गया है

आदमी थोड़ा सयाना हो गया है

 

बात जबसे हक़ की है करने लगा

आप कहते हैं दीवाना हो गया है

 

ज़िक्र फिर से आंसुओं का हम करें

छोड़िए गाना-बजाना हो गया है

 

आप दर्पण पर न यूं चिल्लाइए

आपका चेहरा पुराना हो गया है

 

महफ़िलों में आपके चर्चे हुए

यूं न आना भी तो आना हो गया है

 

"मौलिक व अप्रकाशित"

(डॉ. राकेश जोशी)

 

Views: 1732

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Rakesh Joshi on September 4, 2014 at 6:55pm

आदरणीय माहेश्वरी जी,
आपको मेरी ग़ज़लें पसंद आईं. मैं इसके लिए आपका आभारी हूँ.
आपकी टिप्पणी के लिए आपको धन्यवाद.
सादर,
डॉ. राकेश जोशी

Comment by Maheshwari Kaneri on September 2, 2014 at 6:03pm

बहुत शानदार ग़ज़ल है ...बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by Dr. Rakesh Joshi on August 29, 2014 at 5:18pm
आदरणीय आलोक जी,
आपको मेरी ग़ज़लें पसंद आईं. मैं इसके लिए आपका आभारी हूँ.
आपकी टिप्पणी के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद.
सादर,
डॉ. राकेश जोशी
Comment by Alok Mittal on August 29, 2014 at 11:13am

बहुत शानदार ग़ज़ल है आपकी राकेश भाई जी ....बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by Dr. Rakesh Joshi on August 28, 2014 at 11:40pm

आदरणीय अजय जी,
आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद.
सादर,
डॉ. राकेश जोशी

Comment by Dr. Rakesh Joshi on August 28, 2014 at 11:34pm

Comment by Dr. Rakesh Joshi on August 28, 2014 at 11:34pm

आदरणीय कल्पना जी,
आपको मेरी ग़ज़लें पसंद आईं. आपको बहुत-बहुत धन्यवाद.
सादर,
डॉ. राकेश जोशी

Comment by Dr. Rakesh Joshi on August 28, 2014 at 11:31pm

Comment by Dr. Rakesh Joshi on August 28, 2014 at 11:31pm

आदरणीय राजेश जी,
आपको मेरी ग़ज़लें पसंद आईं. मैं इसके लिए आपका आभारी हूँ. आपके सुझावों पर अमल होगा.
सादर,
डॉ. राकेश जोशी

Comment by Dr. Rakesh Joshi on August 28, 2014 at 11:22pm

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
15 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
15 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
15 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
16 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
21 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service