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घनाक्षरी (राम शिरोमणि पाठक"दीपक")

वीर हैं सपूत सारे, भारती के नैन-तारे!
युद्धभूमि में सदैव झंडा गाड़ देते हैं!!

प्रचंड तेज भाल पे,चाहे हो द्व्ंद्व काल से!
भारती के शत्रुओं का,सीना फाड़ देतेहै!!

विश्व धाक मानता है,वीरता को देख देख !
बड़े बड़ों को भी सदा,ये पछाड़ देते है!!

वज़्र के समान देह,नैनों में प्रचंड आग!!
काँप जाता शत्रु जब ,ये दहाड़ देते है!

***************************************

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 750

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Comment by ram shiromani pathak on August 11, 2014 at 10:50am

हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज जी। .... सादर

Comment by ram shiromani pathak on August 11, 2014 at 10:50am

हार्दिक आभार आदरणीय नरेंद्र  जी। .... सादर

Comment by ram shiromani pathak on August 11, 2014 at 10:49am

हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी  जी। .... सादर

Comment by ram shiromani pathak on August 11, 2014 at 10:49am

हार्दिक आभार आदरणीया छाया जी। .... सादर

Comment by ram shiromani pathak on August 11, 2014 at 10:48am

अमूल्य सुझाव व् उत्साह वर्धन हेतु सदैव  आभारी रहूँगा  आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी। ।   सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 10, 2014 at 5:30pm

देख के वीर सेना के सिपाहियों के लिए सुन्दर सार्थक घनाक्षरी लिखी है हार्दिक बधाई जय हिन्द 

आ० सौरभ जी की बात से सहमत हूँ ..थोडा सा सुधार कर लेंगे तो उत्कृष्ट घनाक्षरी बनेगी  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 10, 2014 at 9:24am

आदरणीय राम शिरोमणि भाई , मुझे छंद का ज्ञान नहीं है , पर पढ़ के अच्छा लगा , रचना के लिए आपको बधाई |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 10, 2014 at 1:34am

इस घनाक्षरी के शब्द-संयोजन पर ध्यान दें, रामशिरोमणिजी. अपेक्षा है,  आपकी गहन प्रक्रिया पुनः प्रारम्भ हो.

बीर सपूत देश के,दुलारे माँ भारती के !
युद्ध भूमि में सदैव,झंडा गाड़ देते है!! 

इसे घनाक्षरी प्रवाह के अनुरूप यों शाब्दिक करना उचित होगा -

वीर हैं सपूत सारे, भारती के नैन-तारे

युद्धभूमि में सदैव झंडा गाड़ देते हैं ..

देखिये ऊपर किस लिहाज में शब्द-संयोजन हुआ है. तीसरे पद को अनायास आपने इसी लहजे में बाँधा भी है -

विश्व धाक मानता है ,देखकर बीरता को !

इस तीसरे पद के दूसरे चरण को यो किया जाय - वीरता को देख-देख

तब यह पूरा पद होगा - विश्व धाक मानता है, वीरता को देख-देख 

दूसरे पद का प्रारम्भ जगण से होने से प्रवाह वस्तुतः बाधित है. तथा द्व्ंद  सही शब्द नहीं है बल्कि द्व्ंद्व है. 

विश्वास है, आप तथ्यों को गहराई से समझने का सार्थक प्रयास करेंगे.

शुभेच्छाएँ.

Comment by Chhaya Shukla on August 9, 2014 at 11:23am

लाजवाब घनाक्षरी आपकी 
बधाई स्वीकारें सादर ! 

Comment by ram shiromani pathak on August 8, 2014 at 6:54pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय !!  मो ० नंबर है 9879586486 ////  सादर 

कृपया ध्यान दे...

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