For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“ आज का मैच तो बड़ा रोमांचक है यार, बड़े जबर्दस्त फार्म में  है टीम...”

“अरे हाँ यार!   तेरे घर  तो मैच देखने का आनंद ही अलग है, पर यार ये अन्दर से कराहने की आवाज तेरी मम्मी की आ रही है क्या..?”

“ आने दे यार!  वो तो उनकी रोज की आदत है, बूढी जो हो गई है थोड़ी देर में सो जाएँगी. तू तो मैच देख  मैच”

 

              जितेन्द्र ’गीत’

      ( मौलिक व् अप्रकाशित )

Views: 872

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on June 19, 2014 at 12:25pm

असंवेदनशीलता कहीं बुढ़ापे के प्रति, कहीं गरीबों के प्रति, कहीं महिलाओं/लड़कियों के प्रति...

यह मानव की मानव के प्रति असंवेदनशीलता हमारे समाज को छलनी कर रही है।

संदेश देती इस लघु कथा के लिय बधाई।

Comment by Shubhranshu Pandey on June 19, 2014 at 9:45am

सुन्दर लघु कथा....बधाई....

//तेरे घर  तो मैच देखने का आनंद ही अलग है, //.... इस आनन्द को एक् दो शब्दों मे विस्तार दे कर कथा को और कसा जा सकता है... सुधिजन विचार दे सकते हैं...

सादर.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 18, 2014 at 10:29pm

आपकी उपस्थिति से रचना धन्य हुई, कुछ भी न कहे आदरणीया मीना दीदी. स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 18, 2014 at 10:26pm

आपकी सराहना से रचना सार्थक हुई आदरणीय जवाहर जी, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 18, 2014 at 10:24pm

आदरणीया राजेश दीदी, आपकी उपस्थिति व् स्नेह हमेशा मुझे संबल देता है.

यह सारी असंवेदनशीलता सिर्फ उन लोगों में होती है जो अपने शौक या सुख में अपनों के दुःख  ही भूल जाए और अपने दुखों में उन्हें भी शामिल कर लेते हों

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 18, 2014 at 10:19pm

आप ने बिलकुल सही कहा आदरणीय डा.गोपाल नारायण जी, अपराध तो हर इंसान करता है. आज आप अपने थोड़े से मनोरंजन में उस कराहना को नही सुन पा रहे जो कभी आपकी उफ़ सुनकर अपना जी जान छोड़कर भागता है. फिर तो आप किसी के लिए भी ईमानदार नही हो. आपने रचना को अपना अमूल्य समय दिया रचना धन्य हुई, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 18, 2014 at 10:11pm

आपके उत्साहवर्धक अनुमोदन हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय डा.विजय जी,स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 18, 2014 at 10:08pm

 जज्बातों को क्या पता कब समझेंगे...? या समझेंगे ही नहीं, यह कोई नही जानता आदरणीय शिज्जू जी, रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए आपका ह्रदय से आभार

सादर!

Comment by Meena Pathak on June 18, 2014 at 4:27pm

...................... क्या कहूँ 


Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 18, 2014 at 12:45pm

आप सही कह रहीं है आदरणीया कुंती जी, कुछ नही कहा जा सकता क्या होगा..? रचना पर आपकी उपस्थिति से मनोबल मिलता है

आपका ह्रदय से आभारी हूँ

सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"आदाब।‌ बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।"
Monday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी।"
Monday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी। आपकी सार गर्भित टिप्पणी मेरे लेखन को उत्साहित करती…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"नमस्कार। अधूरे ख़्वाब को एक अहम कोण से लेते हुए समय-चक्र की विडम्बना पिरोती 'टॉफी से सिगरेट तक…"
Sunday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"काल चक्र - लघुकथा -  "आइये रमेश बाबू, आज कैसे हमारी दुकान का रास्ता भूल गये? बचपन में तो…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"ख़्वाबों के मुकाम (लघुकथा) : "क्यूॅं री सम्मो, तू झाड़ू लगाने में इतना टाइम क्यों लगा देती है?…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"स्वागतम"
Saturday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"//5वें शेर — हुक्म भी था और इल्तिजा भी थी — इसमें 2122 के बजाय आपने 21222 कर दिया है या…"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल है आपकी। इस हेतु बधाई स्वीकार करे। एक शंका है मेरी —…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"धन्यवाद आ. चेतन जी"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय ग़ज़ल पर बधाई स्वीकारें गुणीजनों की इस्लाह से और बेहतर हो जायेगी"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"बधाई स्वीकार करें आदरणीय अच्छी ग़ज़ल हुई गुणीजनों की इस्लाह से और बेहतरीन हो जायेगी"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service