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२१२२, २१२२,२१२२, २१२२  

क्या सुनाऊं दोस्त तुझको ज़िन्दगानी की कहानी,
चार सू तूफ़ान हैं और अपनी कश्ती बादबानी.
***

जब मिले पहले पहल तुम, ख्व़ाब थे रंगीन सारे,
सुर्ख आँखें हैं मेरी उस दौर की ज़िन्दा निशानी.
***

याद की इन आँधियों में दिल बिखर जाता है ऐसे,   

जिल्द फटने पर बिखरती डायरी जैसे पुरानी.
***

देर तक रोता रहा क़ातिल मेरा, मैंने कहा जब, 
जान तू ले ले मेरी तो होगी तेरी मेहरबानी.
***
खो गए है हर्फ़ सारे, बुझ गए जज़्बात मेरे,
क्या बने मिसरा-ए-ऊला क्या बने मिसरा-ए-सानी. 
***

“नूर” भटकेगा हमेशा टीस इक दिल में छुपाकर,
जो नज़र से कह न पाया काश कह देता ज़ुबानी. 
.
निलेश "नूर"
***************************************************
मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 6, 2014 at 9:01am

शुक्रिया गीतिका जी 

Comment by वेदिका on June 5, 2014 at 4:32pm
खो गए है हर्फ़ सारे, बुझ गए जज़्बात मेरे,
क्या बने मिसरा-ए-ऊला क्या बने मिसरा-ए-सानी. बेहद खूबसूरत बयाँ किया है।
शुभकामनाएं
Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 5, 2014 at 9:37am

शुक्रिया आदरणीय राजेश कुमारी जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 5, 2014 at 9:36am

शुक्रिया आदरणीय गिरिराज जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 4, 2014 at 5:10pm

याद की इन आँधियों में दिल बिखर जाता है ऐसे,   

जिल्द फटने पर बिखरती डायरी जैसे पुरानी.------सुभानल्लाह ....वाह्ह्ह्ह शानदार ग़ज़ल बहुत बहुत बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 4, 2014 at 10:57am

आदरणीय नीलेश भाई , हमेशा की तरह बहुत सुन्दर गज़ल पढ़वाई आपने , बहुत खूब , बहुत बधाइयाँ ॥

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 3, 2014 at 10:58pm

शुक्रिया कल्पना जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 3, 2014 at 10:58pm

शुक्रिया मीना जी 

Comment by कल्पना रामानी on June 3, 2014 at 10:47pm

याद की इन आँधियों में दिल बिखर जाता है ऐसे,
जिल्द फटने पर बिखरती डायरी जैसे पुरानी....वाह!!!

लाजवाब शेर! आदरणीय नीलेश जी बधाई इस शानदार ग़ज़ल के लिए !

Comment by Meena Pathak on June 3, 2014 at 10:43pm

बहुत खूब... बधाई आप को आदरणीय 

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