For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उजाले की ओर एक कदम और (लघुकथा)

रात गहराती जा रही थी उसकी आँखों से नींद कोसों दूर थी कमरे में अंघेरा इतना कि हाथ को हाथ सुझाई नही दे रहे थे |उसकी जिंदगी में अन्धेरा तो उसी दिन हो गया था जिस दिन उसने भूषन का हाथ थमा था पर फिर भी वो रौशनी की तलाश में अंधेरों से लड़ती रही | कभी उसका माथा फूट जाता, कभी आँखों के नीचे काला हो जाता तो कभी ठोकर खा कर गिरने से घुटना छिल जाता, अंधेरे में चलने से घाव तो लगने ही थे पर वो आगे बढ़ती रही |
अब वर्षों बाद इतनी दूर आ कर उसे थोड़ी सी रौशनी नसीब हुई तो अचानक ही उसे  फिर से ठोकर लगी और वो धडाम से उसी गहरी अंधेरी खाई में जा गिरी जहाँ फिर से उसके लिए अंघेरे के सिवा कुछ नही था | अब वो क्या करे इन्ही अंधेरों में रह कल अपना आस्तित्व खो दे या पुन: प्रयास करे उजालो की ओर बढ़ने का | एक अंतर्द्वंद से जूझ रही थी, वो क्या करे कुछ समझ नही आ रहा था, शरीर थिसिल होता जा रहा था निराशा के भाव उस पर हाबी होते जा रहे थे |
सोचते-सोचते वो अचानक जैसे उसने कुछ फैसला किया और अपनी आँखों को आँचल से पोंछा रोते-रोते आँखे फूल गयीं थीं और बुरी तरह से जल रहीं थीं | उसके चेहरे पर एक दृढ़ संकल्प था | अगर वो इतनी कठिन परिस्थियों से गुजर कर कर ‘सब’ के लिए सब कुछ कर सकती है तो स्वयं के लिए क्यों नहीं, अब उसे खुद के लिए जीना है, तलाशेगी वो अब खुद के लिए चमकता हुआ नीला आसमान जो खुद उसका हो किसी का दिया हुआ ना हो | आगे बढ़ कर उसने खिड़की पर से मोटा पर्दा हटा दिया और सिर उठा कर आसमां की ओर देखा रात गुजर चुकी थी, सुर्य देव मुस्कुराते हुए उसके स्वागत को खड़े थे उनकी नारंगी रश्मियाँ उसे नहला रहीं थीं | नीले आसमां पर जैसे किसी ने नारंगी रंग उछाल दिया हो और तभी ढेरों परिन्दे एक साथ सुदूर अनन्त की ओर उड़ चले जैसे उन्हें भी अंधेरों से निजात मिली हो और आजाद हो वो गगन में सैर को निकले हों |

मीना पाठक 

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 831

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Meena Pathak on May 18, 2014 at 6:59pm

आदरणीय सुरेन्द्र भ्रमर जी बहुत बहुत आभार | सादर 

Comment by Meena Pathak on May 18, 2014 at 6:58pm

आदरणीय गिरिराज जी टिप्पणी रुपी आशीर्वाद हेतु हृदय से आभार स्वीकारें | सादर 

Comment by Meena Pathak on May 18, 2014 at 6:57pm

प्रिय बाबू .... मैंने कुछ बाते संकेतों में कहने का प्रयास किया है शायद सफल नही हो पायी हूँ ... सराहना हेतु आभार 

Comment by Meena Pathak on May 18, 2014 at 6:55pm

प्रिय जितेन्द्र मेरी हर रचना पर उत्साहवर्धन हेतु हृदयतल से आभार | सस्नेह 

Comment by Meena Pathak on May 18, 2014 at 6:53pm

प्रिय अरुन जी बहुत बहुत आभार .. 

Comment by Meena Pathak on May 18, 2014 at 6:51pm

बहुत बहुत आभार शिज्जू जी | सादर 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 18, 2014 at 12:04pm

अब उसे खुद के लिए जीना है, तलाशेगी वो अब खुद के लिए चमकता हुआ नीला आसमान जो खुद उसका हो किसी का दिया हुआ ना हो | ...

सुन्दर लघु कथा एक सुन्दर सन्देश और उत्साह वर्धक
भ्रमर ५


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 17, 2014 at 5:15pm

आदरणीया मीना जी , अच्छी लघुकथा  की रचना की है आपने , बधाइयाँ ॥

Comment by Vindu Babu on May 17, 2014 at 2:30pm

आदरणीया मीना दी,

कथा में स्पष्ट नहीं हुआ अभी तक किस अँधेरे से लड़ रही थी और फिर कौन सा आघात लगा.

खैर..महिलाओं को अपने लिए भी जीने का संदेश देती हुई इस कथा के लिए आपको हार्दिक बधाई।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 16, 2014 at 10:40pm

बहुत मर्मस्पर्शी रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीया मीना दीदी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
1 hour ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
1 hour ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
1 hour ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
2 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
2 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
7 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service