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मेरा देश महान/तीन कुण्डलिया छंद/कल्पना रामानी

1) 

सोने की चिड़िया कभी, कहलाता था देश

नोच-नोच कर लोभ ने, बदल दिया परिवेश।   

बदल दिया परिवेश, खलों ने खुलकर लूटा। 

भरे विदेशी कोष, देश का ताला टूटा।

हुई इस तरह खूब, सफाई हर कोने की,

ढूँढ रही अब डाल, लुटी चिड़िया सोने की।

2)

पावन धरती देश की, कल तक  थी बेपीर।

कदम कदम थीं रोटियाँ, पग पग पर था नीर।

पग पग पर था नीर, क्षीर की बहतीं नदियाँ,

निर्झर थे गतिमान, रही हैं साक्षी सदियाँ।

सोचें इतनी बात, आज क्यों सूखा सावन?

झेल रही क्यों पीर, देश की धरती पावन।

3)

कोयल सुर में कूकती, छेड़ मधुरतम तान।

कूक कूक कहती यही, मेरा देश महान।

मेरा देश महान, सुनाती है जन जन को,

रोक वनों का नाश, कीजिये रक्षित हमको।

कहनी इतनी बात, अगर वन होंगे ओझल।

कैसे मीठी तान, सुनाएगी फिर कोयल।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 1, 2014 at 1:10pm

ढूँढ रही अब डाल, लुटी चिड़िया सोने की। 2)

कदम कदम थीं रोटियाँ, पग पग पर था नीर।

पग पग पर था नीर, क्षीर की बहतीं नदियाँ, आदरणीय कल्पना जी हमारे बेहतरीन अतीत का चित्रण करती शानदार रचना ,,सादर बधाई के साथ 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on May 1, 2014 at 12:01pm

आदरणीया कल्पना जी

इसके बल पर ऐश, बाद मिल-जुलकर लूटा। 

भरे विदेशी कोष, देश का ताला टूटा।

हुई इस तरह खूब, सफाई हर कोने की,

ढूँढ रही अब डाल, लुटी चिड़िया सोने की।

सुन्दर कुण्डलियाँ , सभी अच्छी  लगी,  हार्दिक बधाई ,प्रथम के लिए विशेष 

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on April 30, 2014 at 11:29pm

वाह सुन्दर कुण्डलियाँ आदरणीया कल्पना जी !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 30, 2014 at 9:48pm

वाह वाह आ० कल्पना जी बहुत सुन्दर कुण्डलिया रची हैं तीनो ही एक से बढ़कर एक देश भक्ति से ओतप्रोत ..हार्दिक बधाई आपको.

कृपया ध्यान दे...

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