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पंछी उदास हैं/नवगीत/कल्पना रामानी

गाँवों के पंछी उदास हैं

देख-देख सन्नाटा भारी।

 

जब से नई हवा ने अपना,

रुख मोड़ा शहरों की ओर।

बंद किवाड़ों से टकराकर,

वापस जाती है हर भोर।

 

नहीं बुलाते चुग्गा लेकर,

अब उनको मुंडेर, अटारी।

 

हर आँगन के हरे पेड़ पर,

पतझड़ बैठा डेरा डाल।

भीत हो रहा तुलसी चौरा,

देख सन्निकट अपना काल।

 

बदल रहा है अब तो हर घर,

वृद्धाश्रम में बारी-बारी।

 

बतियाते दिन मूक खड़े हैं।

फीकी हुई सुरमई शाम।

घूम-घूम कर ऋतु बसंत की,

हो निराश जाती निज धाम।

 

गाँवों के सुख राख़ कर गई,

शहरों की जगमग चिंगारी। 

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by MAHIMA SHREE on April 25, 2014 at 10:42pm

बहुत ही सुंदर मार्मिक नवगीत  .. बहुत -२ हार्दिक बधाई आ. कल्पना दी सादर

Comment by vijay nikore on April 25, 2014 at 11:38am

सरल शब्दों में सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई आदरणीया।

Comment by कल्पना रामानी on April 24, 2014 at 11:02pm

आदरणीय गिरिराज जी, सुंदर टिप्पणी द्वारा प्रोत्साहित करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on April 24, 2014 at 11:01pm

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी, रचना की सराहना करके प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद आपका।

Comment by कल्पना रामानी on April 24, 2014 at 11:00pm

आदरणीय रक्ताले जी, रचना को स्नेह प्रदान करने के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by कल्पना रामानी on April 24, 2014 at 10:59pm

आदरणीय जितेंद्र जी, प्रशंसात्मक टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on April 24, 2014 at 10:58pm

आदरणीय प्रदीप जी, प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक आभार।

Comment by कल्पना रामानी on April 24, 2014 at 10:57pm

आदरणीया अलका जी, बहुत बहुत धन्यवाद आपका

Comment by कल्पना रामानी on April 24, 2014 at 10:56pm

आदरणीया राजेश जी, रचना की सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 24, 2014 at 6:53pm

आदरणीया कल्पना जी , बदलते- बिगडते प्राकृतिक परिवेश को बहुत सुन्दरता से नव गीत मे ढाला है आपने , बहुत बधाइयाँ ।

कृपया ध्यान दे...

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